फाजिल्का: अवैध कब्जे हटाने पर विवाद, बिजली विभाग ने एडीसी कोर्ट में किया केस दर्ज!

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फाजिल्का के बिजली विभाग ने अवैध कब्जों को हटाने के उद्देश्य से बावरिया कॉलोनी के निवासियों के खिलाफ एडीसी की अदालत में मामला दर्ज कराया है। इस मामले में एडीसी कोर्ट ने कॉलोनी के लोगों को समन जारी कर दिया है। समन मिलने के बाद कॉलोनी के निवासी, जैसे कि ब्रिज लाल, राजकुमार और लक्ष्मण सिंह, जिला प्रशासन के दफ्तर पहुंचे और अपनी grievances पेश की। इन लोगों का कहना है कि वे पिछले 70 वर्षों से बावरिया कॉलोनी में रह रहे हैं, जहां उन्हें कोई मूलभूत सुविधाएं नहीं दी गई हैं। उन्हें न पानी की सुविधा मिलती है, न बिजली की और न ही शौचालय की, जिससे उनकी दैनिक जिंदगी में काफी कठिनाई उत्पन्न हो रही है।

समन के बाद कॉलोनी के निवासियों ने आरोप लगाया है कि बिजली विभाग उन्हें अपनी जगह से हटाने की कोशिश कर रहा है, जबकि उनके पास आधार कार्ड और वोटर कार्ड जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं, जो उनके स्थायी निवास को सिद्ध करते हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव के समय सभी राजनीतिक दल उनके पास वोट मांगने आते हैं, लेकिन अब जब उन्हें जरूरत है, तब कोई भी सहयोग करने को तैयार नहीं है। कॉलोनी के निवासियों ने प्रशासन से यह भी अनुरोध किया है कि यदि उन्हें वहां से हटाया जा रहा है, तो उन्हें किसी अन्य स्थान पर पुनर्स्थापित किया जाए, ताकि वे अपने परिवार के साथ वहां स्थायी रूप से बस सकें।

एडीसी जनरल डॉ. मनदीप कौर ने बताया कि पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (पीएसपीसीएल) द्वारा एडीसी की अदालत में पीपी एक्ट के तहत 17 मामलों की फाइलिंग की गई है। आज इस मामले पर पहली सुनवाई का आयोजन किया गया। एडीसी ने कॉलोनी के निवासियों को निर्देशित किया है कि वे अदालत में उपस्थित होकर अपने सबूत प्रस्तुत करें और यह स्पष्ट करें कि उनके पास क्या दस्तावेज हैं, जिनके आधार पर वे उस स्थान पर निवास कर रहे हैं।

एडीसी ने कहा कि इस मामले पर पहले सुनवाई की जाएगी, जिसमें दोनों पक्षों की दलीलें और सबूतों का अवलोकन किया जाएगा। इसके बाद ही इस केस पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या जिला प्रशासन इस मामले को हल कर पाने में सफल हो पाता है या नहीं, क्योंकि बावरिया कॉलोनी के निवासी एक लंबी अवधि से इस मुसीबत का सामना कर रहे हैं।

इस पूरी स्थिति से यह स्पष्ट है कि स्थानीय निवासियों को केवल उनके حقوق की रक्षा की जरूरत है, और ऐसा लगता है कि वे अपने मौलिक अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अब यह देखना होगा कि प्रशासन और अदालत इस मामले में उचित और न्यायसंगत निर्णय लेते हैं या नहीं।