आईआईटी मंडी ने पुलों की सुरक्षा और लचीलेपन को बढ़ाने के लिए डिजिटल मॉडलिंग के माध्यम से शुरू की पुलों की निगरानी

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आईआईटी मंडी ने पुलों की सुरक्षा और लचीलेपन को बढ़ाने के लिए डिजिटल मॉडलिंग के माध्यम से शुरू की पुलों की निगरानी

मंडी, 12 सितंबर (हि.स.)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी की डॉ. सुभामोय सेन के नेतृत्व में शोध टीम ने यातायात डेटा का उपयोग करके पुराने पुलों की स्थिति की निगरानी करने के लिए एक अभिनव तरीका विकसित किया है। यह दृष्टिकोण पुल के सबसे कमजोर हिस्सों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे सुरक्षा और दक्षता में काफी वृद्धि होती है। डॉ. सुभामोय सेन ने अपने शोधार्थी श्री ईश्वर कुंचम के साथ मिलकर पल के पूरे ढांचे की निगरानी के बजाय सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके क्षति योग्य स्थानों और पुलों के धीरे-धीरे बिगडऩे की चुनौतियों का समाधान पेश किया है। उनके शोध को प्रतिष्ठित पत्रिका, स्ट्रक्चरल हेल्थ मॉनिटरिंग में प्रकाशित किया गया है।

यह अभिनव दृष्टिकोण पुल का एक डिजिटल मॉडल विकसित करता है। कृवास्तविक संरचना के प्रारंभिक अध्ययन के आधार पर एक विस्तृत आभासी प्रतिकृति। यह मॉडल भविष्यवाणी करता है कि समय के साथ विभिन्न यातायात पैटर्न पुल के विभिन्न हिस्सों को कैसे प्रभावित करते हैंए साथ ही विशेषज्ञों को क्षति के लिए सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करते हैं। इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों का पता लगाने के बाद, तनाव और कंपन की निगरानी के लिए प्रमुख स्थानों पर थकान-संवेदनशील सेंसर स्थापित किए जाते हैं।

डिजिटल मॉडल से यातायात पैटर्न के साथ संयुक्त यह वास्तविक समय डेटा, विशेषज्ञों को यह ट्रैक करने की क्षमता प्रदान करता है कि समय के साथ यातायात पुल को कैसे प्रभावित करता है। यदि आवश्यक हो, तो पुल की सुरक्षा सुनिश्चित करने और क्षति को रोकने के लिए यातायात प्रवाह और गति में समायोजन किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि पुल अपने पूरे जीवनकाल के दौरान विभिन्न चक्रीय भारों का सामना करते हैं, जिनमें यातायातए हवा और पर्यावरणीय स्थितियां शामिल हैं। समय के साथ, ये बार-बार होने वाले तनाव पुलों की संरचनाओं को कमजोर कर सकते हैं, जिससे संभावित दुर्घटना हो सकती है। इसलिए समय के साथ कमजोर हुए पुलों के ढांचे का समाधान करना आवश्यक है, ऐसी दुर्घटनाओं की भविष्यवाणी और रोकथाम के लिए इस इंजीनियरिंग अनुसंधान में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। पारंपरिक रूप से, पुल के शेष उपयोगी जीवन का आकलन व्यापक सुरक्षा मार्जिन के साथ सरलीकृत तरीकों से किया जाता था, जो हमेशा सटीक नहीं थे। वहीं बाद की प्रगति में जैसे कि वर्षा प्रवाह गणना और परिमित तत्व विश्लेषण ने तनाव और थकान की अधिक विस्तृत समझ प्रदान की है।

डॉ. सुभामोय सेन ने कहा कि हमारा दृष्टिकोण केवल पुल के महत्वपूर्ण क्षेत्रों की निगरानी पर केंद्रित है, जिससे लागत और व्यापक उपकरण की आवश्यकता में काफी कमी आती है। यातायात डेटा का लाभ उठाकर, हम वास्तविक समय में मूल्यांकन प्रदान करते हैं और समय पर हस्तक्षेप करते हैं और बिना बड़े यातायात बाधित किए पुल की सुरक्षा और दीर्घायु सुनिश्चित करते हैं।

उन्होंने बताया कि यह विधि भूकंप या बाढ़ जैसी घटनाओं के बाद भी तेजी से स्थिति का आकलन करने की क्षमता प्रदान करती है। जिससे अधिकारियों को तेजी से सुरक्षा संबंधी निर्णय लेने में सहायता होती है। एक बार प्रारंभिक सेटअप पूरा हो जाने के बाद नियमित निगरानी कम विशेषज्ञ कर्मियों द्वारा की जा सकती है, जिससे लागत में और कमी आती है और इसे कई पुलों पर लागू करना आसान हो जाता है। सरकारी एजेंसियों और परिवहन विभागों के लिए यह दृष्टिकोण पुराने बुनियादी ढांचे के प्रबंधन के लिए एक व्यावहारिक और कुशल समाधान प्रदान करता है। यह पूरे पुल के बजाय उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके अधिक प्रभावी बजट आवंटन को सक्षम बनाता है और आपात स्थितियों में तेजी से निर्णय लेने में सहयोग करता है। जिससे सार्वजनिक सुरक्षा बढ़ती है। इसके अतिरिक्तए यह निरीक्षण के दौरान व्यापक और बाधित यातायात प्रबंधन की आवश्यकता को कम करता है, जिससे यात्रियों के लिए असुविधा कम होती है।

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