सुरेश जैन
दुनिया के ताकतवर मुल्क अमेरिका में पर्यावरण और जीव विज्ञानियों ने बहुत बार शोध करके यह सिद्ध किया है, वृक्षों में भी महसूस करने और समझने की क्षमता होती है। जैन धर्म भी मानता है, वृक्ष में भी आत्मा होती है, क्योंकि यह संपूर्ण जगत आत्मा का ही खेल है। वृक्ष को काटना अर्थात उसकी हत्या करना है। हरित क्रांति की बात चलती है तो मुझे बरबस भगवान तीर्थंकर महावीर का भावपूर्ण स्मरण आता है। पर्यावरण प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में भगवान महावीर की प्रासंगिकता बढ़ गई है। इसीलिए भगवान महावीर को पर्यावरण पुरुष भी कहा जाता है। अहिंसा विज्ञान को पर्यावरण का विज्ञान भी कहा जाता है। भगवान महावीर मानते थे कि जीव और अजीव की सृष्टि में जो अजीव तत्व है अर्थात मिट्टी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति उन सभी में भी जीव है, अतः इनके अस्तित्व को अस्वीकार मत करो। इनके अस्तित्व को नामंजूर करने का मतलब है, अपनी मौजूदगी को अस्वीकार करना। दृश्य और अदृश्य सभी जीवों का अस्तित्व स्वीकारने वाला ही पर्यावरण और मानव जाति की रक्षा के बारे में सोच सकता है।
जैन धर्म में वनस्थली की परम्परा रही है। चेतना जागरण में पीपल, अशोक, बरगद आदि वृक्षों का विशेष योगदान रहा है। ये वृक्ष भरपूर ऑक्सीजन देकर व्यक्ति की चेतना को जागृत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैन धर्म ने सर्वाधिक पौधों को अपनाए जाने का संदेश दिया है। सभी 24 तीर्थंकरों के अलग-अलग 24 पौधे हैं। भगवान महावीर और भगवान बुद्ध समेत अनेक महापुरुषों ने इन वृक्षों के नीचे बैठकर ही निर्वाण या मोक्ष को पाया है, इसीलिए वृक्ष धरती पर ईश्वर के प्रतिनिधि हैं। अंधाधुंध वृक्षों के कटान से हमारे जंगल कंक्रीट जंगल में तब्दील होते जा रहे हैं। यदि कटान की यह रफ्तार न थमी तो एक दिन ऐसा भी होगा, जब मानव को रेगिस्तान की चिलचिलाती धूप में प्यासा मरना होगा।
जंगल से हमारा मौसम नियंत्रित और संचालित होता है। जंगल की ठंडी आबोहवा नहीं होगी तो सोचो धरती आग की तरह जलने लगेगी। इसमें कोई शक नहीं, मनुष्य के मन में लालच की सीमा बढ़ने लगी है। अधिकतम लाभ और धन पाने की इच्छा के वशीभूत होकर वह इन वृक्षों को काटकर इमारती लकड़ियों आदि के रूप में प्रयोग करने लगा है। वृक्षों के बेरोकटोक काटे जाने से पृथ्वी के दुर्लभ जीव-जंतु भी समाप्त हो रहे हैं। कुछ तो संख्या में गिनने लायक ही रह गए हैं। यदि ऐसा ही चलता रहा तो ये दुर्लभ जीव-जंतु बिल्कुल समाप्त हो जाएंगे। वृक्षों के कटान से वायु में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है, जबकि ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। इससे वायु प्रदूषित होकर प्रकृति की स्वाभाविक क्रिया में असंतुलन पैदा कर देती है। परिणामस्वरूप प्रदूषित वातावरण के चलते पर्यावरणीय असंतुलन हो जाता है। इसका मानव स्वास्थ्य पर भी घातक असर पड़ रहा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ऑक्सीजन के बिना जीवन असंभव है। भगवान महावीर का आदर्श वाक्य है-मित्ती में सव्व भूएसु। अर्थात सब प्राणियों से मेरी मैत्री है।
क्लीन टीएमयू-ग्रीन टीएमयू के अपने संकल्प के प्रति तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी प्रतिबद्ध है। प्रदूषण की चुनौतियों से निपटने के लिए 140 एकड़ में आच्छादित यूनिवर्सिटी कैंपस में बीस हजार से अधिक छायादार-फलदार वृक्षों के संग-संग सुगंधित फूलों के पौधे इसके साक्षी हैं। पर्यावरणविदों के मुताबिक पेड़ 05 डिग्री तक तापमान को कम कर सकते हैं, जो न केवल गर्मी से राहत देंगे, बल्कि एसी के उपयोग को कम करेंगे। पेड़ पर्यावरण को भी स्वच्छ करते है। कार्बनडाई ऑक्साइड सरीखी दूषित वायु को सोखकर जीवनदायिनी वायु ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। वृक्ष वर्षा लाने में अति महत्वपूर्ण होते हैं। टीएमयू कैंपस में बहुमूल्य प्रजाति के वृक्षों में चंदन, कल्पवृक्ष, रुद्राक्ष, बादाम, कपूर आदि लगे हुए हैं। यूनिवर्सिटी में सौर ऊर्जा से लेकर जल संचय तक के पुख़्ता बंदोबस्त हैं।
यूनाइटेड नेशन की यह रिपोर्ट हमें चौंकाती है, पृथ्वी की 40 प्रतिशत जमीन प्रदूषित हो चुकी है। 2000 से हर साल सूखा बढ़ता जा रहा है। वैश्विक शोध रिपोर्ट बताती है, एक इंसान के जीवन के लिए 500 पेड़ों की दरकार है, लेकिन पूरी दुनिया में यह आंकड़ा 422 पेड़ों का है। बावजूद इसके भारत का आंकड़ा तो बेहद डरावना है। भारत में एक इंसान के जीवन के लिए महज 28 पेड़ ही हैं। 2024 के तापमान की तपिश को हम ही नहीं, पूरी एशिया झेल रही है। अनगिनत मौतों का आंकड़ा डरा रहा है। इस कड़वी सच्चाई को हम स्वीकारें या अस्वीकारें, लेकिन इस भयावह हालात के लिए हम सब गुनहगार हैं। इसमें कोई शक नहीं है, डेवलपमेंट स्वर्णिम वरदान की मानिंद है, लेकिन भौतिकता की अंधी दौड़ भी पर्यावरण के लिए अभिशाप है।
(लेखक, तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के कुलाधिपति हैं।)