मप्रः आरजीपीवी के बाद मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी में सामने आई गड़बड़ी, ईओडब्ल्यू में शिकायत

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भोपाल, 2 मई (हि.स.)। राजधानी भोपाल स्थित राजीव गांधी प्रौद्योगिकी यूनिवर्सिटी में हुए घोटाले के बाद अब जबलपुर की मध्यप्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी (एमपीएमएसयू) में भी गड़बड़ी का मामला सामने आया है। यूनिवर्सिटी में एक सौ बीस करोड़ रुपये से अधिक की गड़बड़ी की शिकायत आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) से की गई है। एनएसयूआई नेता रवि परमार ने गुरुवार को एक ज्ञापन देकर इस मामले की शिकायत कर प्रकरण पंजीबद्ध करने की मांग की है।

ज्ञापन के माध्यम से कहा कि मध्यप्रदेश की एकमात्र मेडिकल विश्वविद्यालय मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय में बीते साल स्थानीय निकाय संपरीक्षा के ऑडिट में विनियोजन राशि (एफडीआर) के रिन्युअल नहीं कराए जाने का मामला ऑडिट में त्रुटिपूर्ण पाया गया। विश्वविद्यालय के ऑडिट में स्पष्ट कहा गया कि एफडीआर का नवीनीकरण नहीं कराया गया है। ऑडिट में पेश की गई विनियोजन पंजी को किसी भी सक्षम अधिकारी द्वारा प्रमाणित नहीं किया गया है।

उन्होंने अपनी शिकायत में कहा है कि एफडीआर की परिपक्कता तिथि (मेच्युरिटी डेट) में नवीनीकरण (रिन्युअल) नहीं कराया गया। जिसके फलस्वरूप अगस्त 2022 में 30 करोड़ 96 लाख 97 हजार 927, सितंबर 2022 में 9 करोड़ 11 हजार इक्कीस, अक्टूबर 2022 में 34 करोड़ 54 लाख 31 हजार 194 रुपये, माह नवंबर 2022 में 26 करोड़ 83 लाख 46 हजार 508 रुपये, माह दिसंबर 2022 में 8 करोड़ 74 लाख 13 हजार 993 एवं जनवरी 2023 में 10 करोड़ 81 लाख 65 हजार 157 रुपये का नुकसान हुआ है। इस तरह कुल एक अरब 20 करोड़ 90 लाख 65 हजार 100 रुपये की एफडीआर रिन्युअल ना होने की वजह से करीब सवा करोड़ रुपये का नुकसान होने की आशंका है।

परमार ने कहा कि आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा टेंडरों में भी गड़बड़ियां की जा रही हैं, जिससे विश्वविद्यालय को आर्थिक नुकसान हो रहा है। हजारों की संख्या नर्सिंग की उत्तर पुस्तिकाओं को गीला कर करोड़ों रुपये का घोटाला किया गया। एनएसयूआई ने सभी परीक्षाओं के परिणामों की टेबुलेशन शीट और आंसर शीट की जांच कराने की मांग की है।

मामले में मप्र मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार पुष्पराज सिंह बघेल का कहना है कि जिस मामले को लेकर शिकायत की गई है। उसकी जांच विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से कराई जा रही है। इस मामले को भोपाल की आरजीपीवी यूनिवर्सिटी के मामले से जोड़ना गलत है। जो भी एफडीआर हैं वो राष्ट्रीकृत बैंकों में हैं और जो एफडीआर रिन्युअल समय पर नहीं कराने की बात है तो कई बार अफसरों के नहीं होने या दूसरे कारणों से कार्रवाई नहीं हो पाई। लेकिन, बैंकों में करंट इंटरेस्ट रेट पर एफडीआर ऑटोरिन्युअल हो जाता है। इस मामले की हाल ही में प्रारंभिक जांच रिपोर्ट राजभवन में भी प्रस्तुत की गई है। उन्होंने कहा कि घोटाले जैसी बातें निराधार हैं।