प्रयागराज, 10 नवम्बर (हि.स.)। हर सिनेमा की पटकथा का एक सांस्कृतिक परिवेश होता है। उसी सांस्कृतिक परिवेश को विस्तार से पटकथा में ढाला जाता है। पटकथाएं ही सिनेमा का आधार और उसकी रीढ़ बनती है। यह बातें इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के सहायक आचार्य और रंगमंच के विशेषज्ञ डॉ अमितेश कुमार ने कही।
ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज में चल रहे फिल्म एप्रिसिएशन वर्कशॉप के पांचवें और अंतिम दिन ‘सिनेमा : कथा पटकथा’ विषय पर डॉ अमितेश कुमार ने कहा कि हिन्दी सिनेमा की शुरुआत में बहुत दिनों तक पटकथा लिखने की परम्परा नहीं थी। आजादी के बाद पटकथाएं लिखने का सिलसिला शुरू होता है। सिनेमा में पटकथा का कार्य किरदारों की स्थापना से लेकर कहानी को दिशा देने और उसे अंजाम तक पहुंचाने का होता है। पटकथा में पहले ही यह लिख दिया जाता है कि सिनेमा की शुरुआत, मध्यांतर और अंत किस तरह किया जाना है।
डॉ.अमितेश ने क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म ‘डार्क नाइट ट्रियोलॉजी’ और उसकी स्क्रिप्ट (पटकथा) को समानांतर रूप से दिखाकर बताया कि किस प्रकार दृश्यों को लिखा जाता है। उन्होंने फिल्म ‘न्यूटन’ दिखाते हुए फिल्म की स्क्रिप्ट में फिल्म के पहले और दूसरे दृश्य को पढ़ा और पुनः फिल्म में उसकी स्क्रीनिंग भी की। उन्होने बताया कि एक ही कहानी या उपन्यास पर जब अलग अलग पटकथाकार लिखते हैं तो पटकथा का भाव बदल जाता है। कोई लेखक फिल्म की स्क्रिप्ट में लोकेशन बदल देता है, कोई किरदार बदल देता है।
डॉ मनोज कुमार दूबे ने बताया कि फिल्म वर्कशॉप में प्रतिभाग कर रहे विद्यार्थियों ने अंतिम दिन पटकथा की बारीकियों पर वक्ता से सवाल जवाब भी किए। इस दौरान कॉलेज के प्राचार्य प्रो.आनंद शंकर सिंह, सांस्कृतिक समिति की संयोजिका डॉ.गायत्री सिंह, समिति के अन्य सदस्य डॉ.नरेंद्र कुमार सिंह, डॉ. अश्विनी देवी, डॉ.अंजना श्रीवास्तव, डॉ.दीपिका शर्मा मौजूद रहीं। कार्यक्रम का संचालन फिल्म एप्रिसिएशन वर्कशॉप के संयोजक डॉ.अंकित पाठक एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ.दीपिका शर्मा ने किया।