धर्म की ग्लानि होने पर धर्म की पुनः स्थापना के लिए होते हैं भगवदवतार : स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

Share

11HREG409 धर्म की ग्लानि होने पर धर्म की पुनः स्थापना के लिए होते हैं भगवदवतार : स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

वाराणसी,11 अक्टूबर (हि.स.)। ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने बुधवार को कहा कि भगवान् ने अवतार धारण करके अपने भक्तों की भक्ति को परिपूर्ण किया। भुक्ति अर्थात् ऐश्वर्य प्रदान किया और अनेक मनुष्यों, असुरों आदि को मुक्ति प्रदान की। भगवान् के अवतार के अनेक प्रयोजन बताए जाते हैं। भगवद्गीता कहती है धर्म की ग्लानि होने पर धर्म की पुनः स्थापना के लिए भगवदवतार होते हैं तो वहीं अनेक पुराणों से यह पता चलता है कि प्राणियों पर कृपा करने के लिए अवतरण होता है। कुछ लोग कहते है कि भगवदवतार इसी एक कारण से हुआ ऐसा स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता। परन्तु यदि समेकित दृष्टिकोण से देखें तो श्रीमद्भागवत कहती है कि भक्ति, भुक्ति और मुक्ति के लिए भगवदवतार समय-समय पर होते रहते हैं।

यह बातें शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कोरोनाकाल में काल कवलित असंख्य जीवात्माओं की सद्गति के लिए केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ में आयोजित मुक्ति कथा में कहीं। ज्योतिष्पीठाधीश्वर ने कहा कि जन्म लेते ही पूतना को मुक्त किया। इसके बाद धनुकासुर, प्रलम्बासुर, शकटासुर, तृणावर्त आदि अनेक को सद्गति प्रदान की। कारागार के बन्धन से अपने माता पिता को और 16,100 रानियों को मुक्त किया। गोपियों के हृदय में अनन्य भक्ति प्रदान करके उनको भी मुक्त किया। जो जिस भाव से भगवान् का भजन करता है उसी भाव को स्वीकार करके भगवान् उन सबको मुक्त कर देते है। भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म वसुदेव के यहाँ हुआ और नन्द जी के घर में आनन्द मनाया गया। वसुदेव जी के घर भगवान् आए फिर भी उन्होंने सांसारिक भय के कारण भगवान् को अपने से दूर कर दिया और नन्द जी के घर माया ने जन्म लिया था तो माया उनसे दूर हुई तो भगवान् उनके पास आ गये।

शंकराचार्य ने वंशीनाद की व्याख्या करते हुए कहा कि वंशी का उलटा कर दो तो शिवं होता है और शिव का अर्थ है कल्याण। वंशीनाद सुनने पर स्वतः ही प्रत्याहार हो जाता है क्योंकि सब विषयों से मन हटकर केवल एक भगवान् में चला जाता है। भगवती गंगा की कथा सुनाते हुए शंकराचार्य ने कहा कि इस देश में सबसे बड़ा सम्मान माता गंगा को चक्रवर्ती सम्राट् भगीरथ ने शंख बजाकर उसकी अगवानी करते हुए दिया था। आज के शासकों को गंगा के उसी सम्मान को बनाए रखने दिशा में आगे बढना चाहिए।

महालया के दिन होगा असंख्य जीवात्माओं के लिए श्राद्ध-तर्पण

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के निर्देश पर काशी के वैदिक पण्डितों के अगुवाई में केदार क्षेत्र में स्थित शंकराचार्य घाट पर कोरोनाकाल में काल कवलित असंख्य जीवात्माओं की सद्गति के लिए श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक कृत्य का आयोजन किया जाएगा।