04HREG450 समाज की शिक्षक से अपेक्षाएं अधिक: सिकरवार
मुरैना, 04 सितम्बर (हि.स.)। भारत में शिक्षकों का दर्जा माता-पिता और भगवान से भी ऊपर है। शिक्षक हजारों छात्रों के जीवन को प्रकाशमय बनाता है। माता-पिता के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति शिक्षक होता है। समाज में शिक्षकों को सबसे ऊंचा स्थान दिया गया है, क्योंकि वे अपना पूरा जीवन छात्रों को शिक्षा प्रदान करने में बिताते हैं। इसलिए समाज की शिक्षक से अपेक्षाएं भी अधिक होती है। देश के भविष्य को गढऩे वाले शिक्षक को अपने दायित्वों का भली भांति बोध होना आवश्यक है। यह बात सोमवार को मप्र शिक्षक संघ के संभागीय अध्यक्ष डॉ नरेश सिंह सिकरवार ने कही।
संभागीय अध्यक्ष डॉ सिकरवार शिक्षक दिवस के अवसर पर मप्र शिक्षक संघ द्वारा आयोजित शिक्षक की राष्ट्र निर्माण में भूमिका विषय पर संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि शिक्षक अपना सारा जीवन विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए समर्पित कर देते हैं। वह शिष्य के जीवन ही नहीं बल्कि उनके चरित्र का निर्माण करने में भी महत्वपूर्ण भुमिका निभाता है। हमें भली भांति यह समझना चाहिए कि किसी भी अन्य व्यवसाय की तुलना में शिक्षकों का कार्य सबसे महत्वपूर्ण है। शिक्षक ज्ञान, अच्छे मूल्य, परंपरा, आधुनिक समय की चुनौतियाँ और उन्हें दूर करने के तरीके प्रदान करके शिक्षण को मजेदार बना सकते हैं। आज के आधुनिक दौर में शिक्षकों की भूमिका भी बदली है। नई चीजों के साथ तालमेल बैठाना जरूरी है। आज जब इंटरनेट और सोशल मीडिया भी ज्ञान प्राप्त करने शिक्षकों की तरह पेश आ रहे हैं तो ऐसे में शिक्षकों को परंपरागत तरीकों और नए तरीकों में सामंजस्य के साथ शैक्षणिक कार्य को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। शिक्षकों की गरिमा व सम्मान को आगे भी बरकरार रखने के लिए अपनी बदलती भूमिका को समझना जरूरी है।
इस अवसर पर प्रमुखरूप से विमलेश यादव, सतंजय मिश्रा, डा हरेंद्र सिंह तोमर, जगदीश शर्मा, रामावतार सिंह चम्बल, गिरीश शर्मा, रामबरन शर्मा, विनोद सिकरवार, रघुराज परमार, रामबरन शर्मा, जगदीश शर्मा, शिवराज जालौन, जगेंद्र जादौन , भोलेराम शर्मा, रश्मी अग्निहोत्री, ज्योति , भारत सिंह सिकरवार , घनश्याम शर्मा, मोहन सिंह, रवि राजपूत, कुबेर खरे, रामलखन आदि मौजूद रहे।