02HREG353 गुरुपूर्णिमा के दिन ईश्वरीय तत्व नित्य की अपेक्षा 1000 गुना अधिक कार्यरत
– गुरु परंपरा में महर्षि व्यासजी को सर्वश्रेष्ठ गुरु माना गया है
वाराणसी, 02 जून (हि.स.)। गुरू पूर्णिमा (आषाढ़ माह की पूर्णिमा) के दिन गुरुतत्व नित्य की अपेक्षा 1000 गुना अधिक कार्यरत होता है । इसलिए गुरु पूर्णिमा के अवसर पर की गई सेवा एवं त्याग सत् के लिए अर्पण इनका अन्य दिनों की अपेक्षा 1000 हजार गुना अधिक लाभ होता है।
गुरु पूर्णिमा गुरु कृपा (ईश्वर कृपा) प्राप्त करने की एक अनमोल संधि है । गुरु शिष्य परंपरा हिंदुओं की हजारों वर्ष पुरानी चैतन्यमयी संस्कृति है । परंतु समय के प्रवाह में रज-.तम प्रधान संस्कृति के प्रभाव के कारण इस महान गुरु शिष्य परंपरा की उपेक्षा हो रही है । गुरुपूर्णिमा के कारण ही गुरु पूजन होता है। तथा गुरु शिष्य परंपरा को बढ़ावा मिलता है।
सनातन संस्था की प्राची जुवेकर बताती है कि गुरु परंपरा में महर्षि व्यास को सर्वश्रेष्ठ गुरु माना गया है। सभी प्रकार के ज्ञान का उद्गम महर्षि व्यास से होता है। कुंभकोणम एवं श्रृंगेरी ये शंकराचार्य के दक्षिण भारत के प्रसिद्ध पीठ हैं । इन स्थानों पर व्यास पूजा का महोत्सव संपन्न होता है। व्यास महर्षि ये शंकराचार्य के रूप में पुनः अवतरित हुए हैं । इसलिए संन्यासी इस दिन व्यास पूजा के रूप में शंकराचार्य जी की पूजा करते हैं । माया के भवसागर से शिष्य को एवं भक्तों को बाहर निकालने वाले, उनसे आवश्यक साधना करवा कर लेनेवाले एवं कठिन समय में उनको अत्यंत निकटता एवं निरपेक्ष प्रेम से सहारा देकर संकट मुक्त करने वाले गुरु ही होते हैं ।
उन्होंने बताया कि पिता पुत्र को केवल जन्म देता है। परंतु गुरु उसे जन्म मृत्यु से मुक्त करवाते हैं। इसलिए पिता से भी अधिक गुरु को श्रेष्ठ माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी बतलाया है कि ईश्वर भक्ति की अपेक्षा गुरु भक्ति अधिक श्रेष्ठ है। श्री कृष्ण कहते हैं मुझे मेरे भक्तों की अपेक्षा गुरु भक्त अधिक प्रिय हैं। उन्होंने बताया कि गुरु को उपमा देने योग्य इस संसार में दूसरी कोई भी वस्तु नहीं है। गुरु को सागर जैसा कहें तो सागर के पास खारापन है, परंतु सद्गुरु हर तरह से मीठे ही होते हैं । सागर में ;समुद्र में ज्वार भाटा होता है । परंतु सद्गुरु का आनंद अखंड रहता है । सद्गुरु को कल्पवृक्ष कहें तो कल्पवृक्ष हम जो कल्पना करते हैं वह पूरी करता है।