शिक्षक ही युवाशक्ति के निर्माता: रामनाथ कोविंद

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31HNAT22 शिक्षक ही युवाशक्ति के निर्माता: रामनाथ कोविंद

वाराणसी, 31 मार्च (हि.स.)। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शुक्रवार को शैक्षिक जगत के समक्ष उच्चशिक्षा में उभरती चुनौतियां विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में कहा कि शिक्षक ही युवाशक्ति के निर्माता होते हैं। शिक्षक को शिक्षा व्यवस्था में मूलभूत सुधारों के केंद्र में होना चाहिए।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के अंतर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र में आयोजित इस दो दिवसीय संगोष्ठी में पूर्व राष्ट्रपति ने सीखने और सिखाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सीखने के लिए हर व्यक्ति को अहंकार रहित रहते हुए तत्पर रहना चाहिए। उन्होंने मातृभाषा में शिक्षा और उसके प्रयोग के महत्व का उल्लेख कर कहा कि चिंतन-मनन करना ही शिक्षक का कार्य है। सभी स्तरों पर शिक्षकों को हमारे समाज के सबसे सम्मानित और आवश्यक सदस्यों के रूप में फिर से स्थापित किया जाना चाहिए। क्योंकि वे वास्तव में नागरिकों की हमारी अगली पीढ़ी को आकार देते हैं।

उन्होंने भारत के नेतृत्व की सराहना कर कहा कि दुनिया में देश की साख लगातार बढ़ रही है। भारत इस समय दुनिया की पांचवीं आर्थिक शक्ति है। अगले दो या तीन वर्षों में भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन जाएगा। वैश्विक नजरिये से भारत के बढ़ते कद का उल्लेख कर उन्होंने कहा कि ऐसा कम देखने को मिला है कि दो देश युद्ध कर रहे हों और उन्हें कहा जाए कि 24 घंटे के लिए सीज फायर कर दीजिए। हमारे 23 हजार बच्चे रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान यूक्रेन में फंसे थे। उसी 24 घंटे के दौरान हमारे देश के बच्चे अपने हाथों में तिरंगा लेकर यूक्रेन की सीमा पर स्थित चार देशों तक पहुंचे। वहां भारतीय दूतावास के अधिकारी मौजूद थे। बच्चों को सकुशल वापस घर लाया गया। जबकि अमेरिका और चीन जैसी महाशक्तियों ने अपने देश के युवाओं को खुद के प्रयास से वापस आने के लिए कह दिया था।

एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक प्रो. जगमोहन सिंह राजपूत ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की। प्रो. राजपूत ने कहा कि प्रत्येक राष्ट्र में शिक्षाविदों की नियति है कि वे आंतरिक या बाह्य प्रत्येक चुनौती का समाधान प्रस्तुत करें। शैक्षिक संस्थाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने भीतर उम्मीदों के आलोक में देखना है। इसके लिए इतिहास, विरासत, संस्कृति, ज्ञान निर्माण और पीढ़ीगत परंपरा के गहन अध्ययन की आवश्यकता है। उन्होंने शिक्षाविदों का आह्वान किया कि वे अपनी साख को पुनर्स्थापित करने के लिए और उच्चशिक्षा संस्थानों की विश्वसनीयता को एक बार फिर से उन्नत स्तर पर पहुंचाने के लिए कड़ी मेहनत करें।

केंद्र के निदेशक प्रो. प्रेम नारायण सिंह ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आलोक में आईयूसीटीई के दायित्वों का उल्लेख किया।