11HREG32 शोध : प्राकृतिक भूमि का आवरण दे रहा मृत्युदर को बढ़ावा, बढ़ रही बीमारियां
– लखनऊ विश्वविद्यालय के डाक्टर वरूण छाछर ने किया शोध
लखनऊ, 11 मार्च (हि.स.)। अर्बन हीट आइलैंड्स तब होते हैं जब शहर प्राकृतिक भूमि के आवरण को फुटपाथ, इमारतों और अन्य सतहों की घनी सघनता से बदल देते हैं, जो गर्मी को अवशोषित और बनाए रखते हैं। यह प्रभाव ऊर्जा लागत (जैसे, एयर कंडीशनिंग के लिए), वायु प्रदूषण के स्तर और गर्मी से संबंधित बीमारी को बढ़ाता है और मृत्यु दर में बढ़ावा देता है। यह शोध लखनऊ विश्वविद्यालय के डा. वरूण छाछर ने किया है। इस प्रोजेक्ट के लिए इण्डियन कौंसिल फॉर सोशल साइंस रिसर्च 15 लाख रुपये दिये हैं।
प्रोजेक्ट के निदेशक डॉ. वरुण छाछर के प्रमुख अन्वेषण के तहत यह शोध शीर्षक विषय “नगर पालिकाओं के बेहतर पर्यावरण प्रबंधन में सार्वजनिक नीतियों की भूमिका” रखा गया है। शहरी निवासियों के दैनिक जीवन पर शहरी गर्मी के प्रभाव का व्यवस्थित अध्ययन। उनके शोध का निष्कर्ष है कि गर्म द्वीपों के कारण दिन के तापमान में वृद्धि होती है, रात के समय ठंडक कम होती है और वायु-प्रदूषण का स्तर बढ़ता है। बदले में ये गर्मी से संबंधित मौतों और गर्मी से संबंधित बीमारियों जैसे सामान्य असुविधा, सांस की कठिनाइयों, गर्मी में ऐंठन, गर्मी की थकावट और गैर-घातक हीट स्ट्रोक में योगदान करते हैं। खराब अपशिष्ट प्रबंधन शहरी पारिस्थितिकी तंत्र को और अधिक गर्म करने में योगदान देता है।
यह अध्ययन उत्तर प्रदेश पर फोकस के साथ भारत में ‘अर्बन हीट आइलैंड’ प्रभाव के प्रभाव पर आधारित है। भारतीय संदर्भ में अर्बन हीट आइलैंड की परिघटना पर व्यवस्थित शोध का अभाव, अर्बन हीट के प्रभाव को स्थानीय जलवायु और वैश्विक पर्यावरण के संदर्भ में पकड़ा गया है, लेकिन रोजमर्रा की जीवन स्थितियों के संदर्भ में भी नहीं, उदाहरण के लिए, शीतलन ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकता के साथ, तीव्र यूएचआई की उपस्थिति चरम बिजली भार को बढ़ा सकती है और आगे बढ़ सकती है। अंधकार, उपलब्ध शोध में शहरी स्थानीय निकायों की भूमिका अनुपस्थित है। सर्वोत्तम अभ्यास वैज्ञानिक वास्तुकला तक ही सीमित हैं। इसलिए, स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों और मितव्ययी तरीकों की जांच करने की आवश्यकता है। नागरिक समाज की भूमिका को बढ़ाने की जरूरत है। मानव स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को शहरी अनुभव की तुलना में विस्तारित करने की आवश्यकता है।
प्रोजेक्ट के निदेशक डॉ. वरुण छाछर ने बताया कि उच्च तापमान के कारण होने वाली कठिनाई को कम करने के लिए नागरिक समाज के सभी सदस्यों को लागत प्रभावी तरीकों से लैस किया जा सके। इस प्रोजेक्ट के माध्यम से जलवायु परिवर्तन और आपदा जोखिमों के लिए शहरी लचीलापन बनाने के लिए एक स्थायी मॉडल तैयार करने की आवयश्यकता पर ये प्रोजेक्ट बल देता है।