02HREG397 प्रदेश के चंदौली फिरोजपुर के कोठी पहाड़ी में मिला उत्तर भारत का पहला पाषाण स्तूप
—भीखमपुर में बुद्ध तथा बोधिसत्व की प्रतिमाओं के साथ पुरातात्विक महत्त्व का विशाल टीला भी मिला
—दाउदपुर में पुरापाषाणिक औजारों तथा चित्रित शैलाश्रयों की नई खोज
वाराणसी, 02 मार्च (हि.स.)। यूपी के चंदौली जनपद के चकिया तहसील के फिरोजपुर गांव की कोठी पहाड़ी में उत्तर भारत का पहला पाषाण स्तूप मिला है। पुरातात्विक महत्व की दृष्टि से अहम पाषाण स्तूप काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के शोध छात्र परमदीप पटेल के सर्वेक्षण में सामने आया है। इतिहास के दृष्टि से खास शोध सर्वेक्षण में भीखमपुर एवं दाउदपुर गांवों में पुरातात्विक महत्व की दृष्टि से अनेक पुरास्थल प्रकाश में आये हैं। इसके साथ ही यहाँ से बड़ी संख्या में पुरापाषाणिक औजार, मध्यपाषाण काल के उपकरण, मेगालिथिक समाधियाँ और चित्रित शैलाश्रय मिले हैं । जिनका अनुमानित कालक्रम पाँच हजार वर्षों से पचास हजार वर्ष पूर्व तक का माना जाता है। सर्वेक्षण के दौरान भीखमपुर गाँव में स्थित पहाड़ी में भी प्रागैतिहासिक शैलाश्रय मिले हैं जिनमें आदि मानव द्वारा लाल रंग से बनाये गए विभिन्न प्रकार के चित्र तथा पूरी पहाड़ी के विभिन्न भागों में मगध प्रकार के उत्कीर्ण विशेष चिन्ह प्राप्त होते हैं। शोध निर्देशक प्रो. महेश प्रसाद अहिरवार ने गुरूवार को बताया कि
इस प्रकार के चिन्ह प्रायः: मगध शैली के आहत सिक्कों में देखे जाते हैं। इस पहाड़ी की एक प्राकृतिक गुफा से बुद्ध मूर्ति तथा पहाड़ी की चोटी पर बने आधुनिक मंदिर में स्थित बोधिसत्व की प्रतिमा इस क्षेत्र के दीर्घकालीन इतिहास को प्रतिबिंबित करती है। ये प्रतिमाएं प्रतिमा लक्षण की दृष्टि से कुषाण कालीन प्रतीत होती हैं। पहाड़ी पर स्थित पुराने भवनों के जमींदोज खंडहरों की बिखरी ईंटों से इस तथ्य की पुष्टि होती है।
— पहाड़ी की तलहटी के ठीक नीचे एक विशाल पुरातात्विक महत्त्व का टीला भी मिला
प्रो. अहिरवार ने बताया कि पहाड़ी की तलहटी के ठीक नीचे एक विशाल पुरातात्विक महत्त्व का टीला भी मिला है जहाँ पर विभिन्न प्रकार की पुरावस्तुयें बिखरी पड़ी हैं। इसमें छठी शताब्दी से लेकर पूर्व मध्यकालीन मृदभांड के टुकड़े, मुख्यतः: कृष्ण लोहित मृदभांड, कृष्ण लेपित मृदभांड, मोटे एवं पतले गढ़न के लाल मृदभांड तथा पत्थर के सिल-लोढे, चक्कियां, माप-तौल में प्रयोग में लाये जानेवाले पत्थर के बटखरे प्राप्त होते हैं। उन्होंने बताया कि फिरोजपुर की कोठी पहाड़ी पर मिला स्तूप उत्तर भारत का पहला पाषाण निर्मित स्तूप है। यह महान मौर्य सम्राट अशोक के समय का निर्मित एक विलक्षण स्तूप है। इस प्रकार के पत्थर के स्तूप साँची और उसके आसपास के क्षेत्र में बहुतायत में मिलते हैं जो अपनी निर्माण शैली और कला सौंदर्य के लिए विश्वविख्यात हैं। प्रो अहिरवार ने बताया कि “उत्तर भारत में नये पाषाण स्तूप की खोज ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि उत्तर भारत में अब तक जितने भी स्तूप प्रकाश में आये हैं वह सभी ईंटों या मिट्टी के बने हैं। इससे ऐतिहासिक और पुरातात्विक अनुसंधान के नये द्वार खुलेंगे।
पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान शोध-छात्र परमदीप पटेल के साथ रविशंकर सिंह पटेल और केतन पटेल भी मौजूद रहे। विभाग के ही प्रोफेसर डॉ. महेश प्रसाद अहिरवार, सहायक प्रोफेसर डॉ. विनय कुमार ने खोजें गए पुरास्थलों से प्राप्त पुरातात्विक साक्ष्यों के प्रमाणन के निमित्त पुरास्थलों का भ्रमण किया तथा उनके ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व की पुष्टि की। परमदीप पटेल प्रोफेसर महेश प्रसाद अहिरवार के पर्यवेक्षण में अपने शोध विषय ‘चंद्रप्रभा नदी घाटी के विशेष सन्दर्भ में चंदौली जनपद का सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक अध्ययन’ विषय पर शोध कार्य कर रहे है।
बताते चले उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है। यह जिला प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान तक अनेक सांस्कृतिक क्रियाकलापों का केन्द्र रहा है। इस जनपद में प्रवाहमान छोटी-बड़ी नदियां मानव के उद्भव और विकास की कहानी की गवाह रही हैं तथा विभिन्न संस्कृतियों एवं सभ्यताओं के फलने-फूलने में इनका अहम योगदान रहा है।