अपराध से बरी फैसलों के खिलाफ सरकार की रूटीन अपील पर कोर्ट सख्त

Share

31HLEG20 अपराध से बरी फैसलों के खिलाफ सरकार की रूटीन अपील पर कोर्ट सख्त

–विधि सचिव से मांगी सफाई, किन परिस्थितियों में दाखिल की अपील

प्रयागराज, 31 मार्च (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिना किसी ठोस आधार के अपराध से बरी होने के फैसलों के खिलाफ सरकार द्वारा अपील दाखिल करने को न केवल कोर्ट के समय की बर्बादी करार दिया अपितु इसे सरकार पर अनावश्यक बोझ बताया है।

कोर्ट ने कहा अधिकारी जवाबदेही से बचने के लिए गैर जरूरी मामलों में भी रूटीन तरीके से काफी देरी से अपील दाखिल करते हैं। जबकि सरकार के लिए जरूरी नहीं है कि हर केस में अभियुक्त के बरी होने के फैसले के खिलाफ अपील दाखिल ही करें। कोर्ट ने इसे निंदनीय मानते हुए सरकार को इस पर विचार करने को कहा है।

कोर्ट ने विधि सचिव को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर बताने को कहा है कि किस परिस्थिति में अभियुक्त के सत्र अदालत से बरी होने के फैसले को अपील में चुनौती देने का निर्णय लिया गया। और राज्य की वाद नीति के आलोक में क्या तंत्र विकसित किया गया है।

कोर्ट ने सचिव को फैसले के खिलाफ अपील दाखिल करने की मूल पत्रावली भी पेश करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा वह अपील खारिज कर देती किंतु अपील दाखिल करने में 213 दिन की देरी की जिस तरह से सफाई दी गई है। इस मुद्दे पर राज्य सरकार की सफाई जरूरी है। आपराधिक अपील की अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होगी।

यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने राज्य सरकार की आपराधिक अपील की सुनवाई करते हुए दिया है।

नाबालिग के अपहरण व दुष्कर्म के आरोपी थाना जखराना, फिरोजाबाद के सोनू को पीड़िता के उसके पक्ष में बयान देने व दोनों के साथ जीवन बिताने के तथ्य को देखते हुए बरी कर दिया था।

सरकार ने 7 मई 22 के फैसले के खिलाफ अपील दाखिल करने में 213 दिन की देरी होने का कारण बताया कि डीजीसी व जिलाधिकारी के मार्फत सरकार को 4 अगस्त 22 को पत्रावली मिली। हाईकोर्ट से गठित कमेटी ने विचार किया। अपनी रिपोर्ट में कहा कि फैसले के खिलाफ अपील दाखिल करने लायक तथ्य नहीं है। 13 जनवरी 23 के शासनादेश से सरकार ने कमेटी की रिपोर्ट की अनदेखी कर अपील दाखिल करने का निर्णय लिया।

शिकायतकर्ता ने कक्षा 10 की छात्रा अपनी नाबालिग 15 साल की बहन के अपहरण व दुष्कर्म करने के आरोप में 27 जनवरी 14 को एफ आई आर दर्ज कराई। पुलिस चार्जशीट पर कोर्ट ने संज्ञान लिया और अभियुक्त पर आरोप निर्मित किए। पीड़िता ने कोर्ट में बयान दिया कि आरोपी ने उसके साथ कुछ भी ग़लत करने की कोशिश नहीं की। सत्र अदालत/विशेष अदालत ने अभियुक्त को बरी कर दिया।

आरोपी का कहना था कि पीड़िता की आयु 18 साल की है और दोनों साथ रह रहे हैं। इस पर कोर्ट ने विधि सचिव से पूछा है कि कमेटी की रिपोर्ट किस आधार पर नहीं मानी गई और अपील करने का फैसला लिया गया।