मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थलों में से एक प्राचीन नेमावर के हाल-बेहाल

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19HSNL3 मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थलों में से एक प्राचीन नेमावर के हाल-बेहाल

देवास/नेमावर, 19 फरवरी (हि.स.)। नर्मदा के किनारे बसे नगर नेमावर के प्राचीन सिद्धनाथ महादेव का मंदिर पर्यटन स्थल होने के बावजूद अभी भी उपेक्षा का शिकार हो रहा है ना तो यहां शासन के द्वारा कोई सुध ली जा रही है और ना ही पर्यटन विभाग के द्वारा।

जानकारी के लिए बता दें कि अति प्राचीन मंदिर होने के बावजूद भी यहां अव्यवस्थाओं का अंबार है ना तो यात्रियों के ठहरने के लिए विशेष इंतजाम है और ना ही व्यवस्थित घाटों का निर्माण, चारों तरफ आवारा पशुओं एवं गंदगीयों का डेरा हमेशा बना रहता है। इस स्थान की महत्ता को इस प्रकार समझा जा सकता है कि महाभारतकाल में नाभिपुर के नाम से प्रसिद्ध यह नगर व्यापारिक केंद्र हुआ करता था यहीं पर नर्मदा नदी का ”नाभि” स्थान है।

यहां पर आने वाले श्रद्धालु मीना राठी, कंचन राठी बताती है कि यहां आने से काफी सुकून मिलता है और मां नर्मदा के स्नान से आत्म संतुष्टि मिलती है पर यहां अवस्थाएं थोड़ा मन को व्यतीत करती हैं अगर पर्यटन विभाग यहां थोड़ी व्यवस्थाएं अच्छे से कर दें तो मध्य प्रदेश का यह एक बहुत सुंदर पर्यटक स्थल हो सकता है यहां पर काफी दूर-दूर से लोग मां नर्मदा के स्नान के लिए और भगवान सिद्धेश्वर के दर्शन के लिए आते हैं।

आइए जानते हैं भगवान सिद्धेश्वर और इस मंदिर के बारे में

किंवदंती है कि सिद्धनाथ मंदिर के शिवलिंग की स्थापना चार सिद्ध ऋषि सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार ने सतयुग में की थी। इसी कारण इस मंदिर का नाम सिद्धनाथ है। इसके ऊपरी तल पर ओमकारेश्वर और निचले तल पर महाकालेश्वर स्थित हैं। श्रद्धालुओं का ऐसा भी मानना है कि जब सिद्धेश्वर महादेव शिवलिंग पर जल अर्पण किया जाता है तब ॐ की प्रतिध्वनि उत्पन्न होती है।

ऐसी मान्यता है कि इसके शिखर का निर्माण 3094 वर्ष ईसा पूर्व किया गया था। द्वापर युग में कौरवों द्वारा इस मंदिर को पूर्वमुखी बनाया गया था, जिसको पांडव पुत्र भीम ने अपने बाहुबल से पश्चिम मुखी कर दिया था।

नेमावर के आस-पास प्राचीनकाल के अनेक विशालकाय पुरातात्विक अवशेष मौजूद हैं।

हिंदू और जैन पुराणों में इस स्थान का कई बार उल्लेख हुआ है। इसे सब पापों का नाश कर सिद्धिदाता तीर्थस्थल माना गया है।

नर्मदा के तीर स्थित यह मंदिर हिंदू धर्म की आस्था का प्रमुख केंद्र है। 10वीं और 11वीं सदी के चंदेल और परमार राजाओं ने इस मंदिर का जिर्णोद्धार किया, जो अपने-आप में स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। मंदिर को देखने से ही मंदिर की प्राचीनता का पता चलता है। मंदिर के स्तंभों और दीवारों पर शिव, यमराज, भैरव, गणेश, इंद्राणी और चामुंडा की कई सुंदर मूर्तियाँ उत्कीर्ण है।

यहाँ शिवरात्रि, संक्रांति, ग्रहण, अमावस्या आदि पर्व पर श्रद्धालु स्नान-ध्यान करने आते हैं। साधु-महात्मा भी इस पवित्र नर्मदा मैया के दर्शन का लाभ लेते हैं।

कैसे पहुँचे :-

वायु मार्ग : यहाँ से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देवी अहिल्या एयरपोर्ट, इंदौर 130 किमी की दूरी पर स्थित है।

रेल मार्ग : इंदौर से मात्र 130 किमी दूर दक्षिण-पूर्व में हरदा रेलवे स्टेशन से 22 किमी तथा उत्तर दिशा में भोपाल से 170 किमी दूर पूर्व दिशा में स्थित है नेमावर।

सड़क मार्ग : नेमावर पहुँचने के लिए इंदौर से बस या टैक्सी द्वारा भी जाया जा सकता है।