28HREG386 रंगभरी एकादशी: महंत आवास पर हुई गौरा की हल्दी, गाए गए मंगल गीत
-बाबा विश्वनाथ के गौना उत्सव का पहला दिन, मंहत आवास बना गौरा का मायका
वाराणसी, 28 फरवरी (हि.स.)। महाशिवरात्रि पर्व पर शिव-पार्वती विवाह के उपरांत रंगभरी (अमला) एकादशी पर बाबा के गौना की रस्म उत्सव शुरू हो गई है। मंगलवार शाम उत्सव में पहले दिन टेढ़ीनीम स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत आवास पर मां गौरा के रजत विग्रह को संध्याबेला में हल्दी लगाई गई। गौरा के विग्रह को तेल हल्दी की रस्म के लिए सुहागिनों और गवनहिरयों की टोली संध्या बेला में महंत आवास पहुंची। इस उत्सव में मोहल्ले की बुजुर्ग महिलाएं भी शरीक हुईं। ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच मंगल गीत गाते हुए महिलाओं ने गौरा को हल्दी लगाई। मांगलिक गीतों से महंत आवास गुंजायमान हो उठा। लोक संगीत के बीच बीच शिव-पार्वती के मंगल दाम्पत्य की कामना पर आधारित पारंपरिक गीतों का क्रम देर तक चला। ‘गौरा के हरदी लगावा, गोरी के सुंदर बनावा…’, ‘सुकुमारी गौरा कइसे कैलास चढ़िहें…’, ‘गौरा गोदी में लेके गणेश विदा होइहैं ससुरारी…’ आदि गीतों में गौने के दौरान दिखने वाली दृश्यावली का बखान किया गया। मंगल गीतों में यह चर्चा भी की गई कि गौना के लिए कहां क्या तैयारी हो रही है। दूल्हे के स्वागत के लिए कौन-कौन से पकवान पकाए जा रहे हैं। सखियां पार्वती का साज श्रृंगार करने के लिए कैसे कैसे सुंदर फूल चुन कर ला रही हैं।
हल्दी की रस्म के बाद नजर उतारने के लिए ‘साठी क चाऊर चूमिय चूमिय..’ गीत गाकर महिलाओं ने गौरा की रजत मूर्ति को चावल से चूमा। गौरा के तेल-हल्दी की रस्म के लिए महंत डा कुलपति तिवारी सानिध्य में संजीव रत्न मिश्र ने माता गौरा का श्रृंगार किया और हल्दी रस्म पूजन आचार्य सुशील त्रिपाठी ने कराया व अंकशास्त्री पं. वाचस्पति तिवारी के संयोजन में सांस्कृतिक कार्यक्रम “शिवांजली” के अंतर्गत श्रद्धालु महिलाओं द्वारा शिव भजनों की प्रस्तुति की।