28HREG331 नाटक करने और समझने में काफी अंतरः गौतम सिद्धार्थ
–उप्र संगीत नाटक में शुक्रवार से शुरू हुई नाट्य लेखन कार्यशाला
लखनऊ, 28 अक्टूबर (हि.स.)। नाटक करना और नाटक को समझना दोनों में काफी अन्तर है। इसी को समझाने और सिखाने के लिए उप्र संगीत नाटक अकादमी की ओर से कई वर्षों के लम्बे अन्तराल के बाद शुक्रवार को नाट्य लेखन कार्यशाला आयोजित की गई। संचालन भारतेन्दु नाट्य अकादमी के स्नातक तथा लगभग 35 वर्षों से मुम्बई में लेखन और निर्देशन का कार्य कर रहे गौतम सिद्धार्थ ने किया।
कार्यशाला के प्रारम्भ में अकादमी के सचिव तरूण राज व नाट्य सर्वेक्षक शैलजा कांत की उपस्थिति में औपचारिक तौर पर कार्यशाला निर्देशक के परिचय से हुआ। शाहजहांपुर से आए प्रसिद्ध लेखक जसमीत साहनी भी उपस्थित रहे।
औपचारिक परिचय के बाद सिद्धार्थ ने कार्यशाला कराये जाने के मूल उद्देश्य को बताते हुए कहा कि यह कार्यशाला किसी एक नाटक के सृजन के लिए नहीं है बल्कि नाट्य लेखन की बारीकियों को समझने के लिए एक कड़ी है। इसमें लॉगलाइन, नाटक का कॉन्टेन्ट, दृश्य परिकल्पना, संवाद रचना, चरित्र को महान कैसे बनाये? उन्होंने कहा नाटक लेखन की अपनी सीमाएं हैं फिर भी उसे प्रभावशाली बनाने के लिए कुछ ट्रिक्स और टिप्स का इस्तेमाल किया जाता है। लेखक अपने ही लिखे नाटक से कौन-कौन से सवाल पूछ सकता है और साथ ही प्रसिद्ध नाटककारों द्वारा लिखे गए नाटकों से अपने नाटक का तुलनात्मक अध्ययन, ऐसे ही विषयों पर कार्यशाला के इन बीस दिनों में काम किया जाएगा।
कार्यशाला में नए प्रशिणार्थियों के साथ-साथ उन लोगों ने भी कार्यशाला में प्रतिभाग करने की जिज्ञासा दिखाई जो पूर्व में कई किताबें लिख चुके हैं। उनमें से डॉ. करूणा पाण्डे के अलावा कई नाट्य निर्देशक हैं, जिन्होंने पूर्व में स्वरचित नाटकों का निर्देशन किया है।