(बॉलीवुड के अनकहे किस्से) शम्मी कपूर का याहू स्टाइल…

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अजय कुमार शर्मा

शम्मी कपूर…पर्दे पर चुलबुली अदाओं और बेपरवाह सा असंतुलित नृत्य करने का बिल्कुल अलग स्टाइल। इस स्टाइल की शुरुआत हुई 1956 की फिल्म ‘ तुमसा नहीं देखा’ से, जो ‘जंगली’ तक आते-आते खिल उठा। इस स्टाइल ने उन्हें शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचाया… लाखों युवक-युवतियों को दीवाना बनाया। उनके इस स्टाइल की प्रेरणा के बारे में एक रोचक किस्सा है।

एक पत्रकार को उन्होंने कभी बताया था कि मेरे इस स्टाइल में एक रिदम थी जो सचमुच म्यूजिक से ही पैदा हुई थी और उसका असली क्रेडिट जाता है नरगिस जी को। जब मैं छोटा था तो फुर्सत मिलने पर राज जी यानी अपने बड़े भाई राज कपूर की शूटिंग देखने चला जाता था। एक दिन जब मैं वहां पहुंचा तो नरगिस जी आंखों में आंसू लिए मुंह लटकाए बैठी थीं। कारण मालूम करने पर पता चला कि किसी वजह से उन्हें ‘आवारा’ फिल्म में नहीं लिया जा रहा है। मैंने उनसे कहा कि आप रोइए मत, यह रोल आपको जरूर मिलेगा। उन्होंने भी हंसकर कहा कि मिलेगा तो तुम्हें एक पप्पी दूंगी। बात आई गई हो गई। ‘आवारा’ नरगिस को मिली भी और हिट भी हुई। काफी समय बाद नरगिस से मिलने पर जब मैंने शरारती अंदाज में उनसे अपने इनाम का बारे में पूछा तो उनका कहना था कि वह इनाम तो अब तुमको नहीं दिया जा सकता, कुछ और मांग लो। बात भी ठीक थी…

जब यह बात हुई थी तब शम्मी कपूर छोटे लड़के जैसे थे, नेकर पहन कर घूमने वाले। अब तो उनकी मूछें निकल आईं थीं। शम्मी कपूर को म्यूजिक का बेहद शौक था तो उन्होंने एक रिकॉर्ड प्लेयर की मांग कर दी। उस समय यह बड़ी चीज हुआ करती थी। नरगिस जी ने तुरंत उन्हें गाड़ी में बिठाया और फिरोजशाह मेहता रोड पर रिदम हाउस जाकर 320 रुपये में लाल रंग का रिकॉर्ड प्लेयर खरीद दिया। अब शम्मी कपूर ढूंढ-ढूंढ कर अच्छे-अच्छे देशी-विदेशी रिकॉर्ड जमा करने लगे। जब भी फुर्सत होती तो अपने दोस्तों को साथ लेकर वह घर की छत पर चले जाते और उस म्यूजिक पर मनमाने ढंग से नाचते। हालांकि तब उस नृत्य का कोई मकसद नहीं होता था, पर बॉडी मूवमेंट को रिदम के साथ जोड़ना उन्होंने इसी दौरान सीखा। इसीलिए उन्होंने अपनी याहू स्टाइल को हमेशा नरगिस जी की देन कहा।

आज जब एक छोटे से छोटे स्टेप के लिए हीरो-हीरोइन डांस डायरेक्टर पर निर्भर हैं, यह विश्वास करना सचमुच मुश्किल है कि इतनी फिल्मों के सुपरहिट नृत्य उन्होंने खुद ही संयोजित किए थे।

चलते-चलते

गीता बाली से शम्मी कपूर ने 29 अगस्त 1955 की आधी रात को अचानक ही शादी का फैसला किया था। वे उन दिनों जुहू होटल में रह रहे थे, क्योंकि उनके माता-पिता पृथ्वी थिएटर्स को लेकर दौरे पर गए हुए थे। उनकी उम्र उस समय तेईस बरस थी। पहले वे जॉनी वॉकर के घर गए। उन्होंने कोई एक हफ्ते पहले ही भागकर शादी की थी। शम्मी ने उनसे पूछा कि क्या हम भी इसी तरह शादी कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि बेवकूफ, मैं मुस्लिम हूं। तुम तो मंदिर में जाओ। उन्हें यह ख्याल जच गया और वे देर रात एक मंदिर में पहुंच गए। तब बारिश हो रही थी और मंदिर भी बंद था। उन्होंने पुजारी को जगाकर कहा कि वे सुबह चार बजे वापस आयेंगे। तब वे माटुंगा गए जहां गीता बाली रहती थीं और उनको मंदिर लेकर आए। इस शादी का एक ही गवाह था, कॉफी हाउस फिल्म के निर्माता-निर्देशक, उनका दोस्त हरी वालिया, जिसमें गीता और शम्मी उस वक्त साथ काम कर रहे थे। असल में, वालिया ने उन्हें नैपियन सी रोड पर बने बाणगंगा मंदिर में जाने को कहा था। उन्होंने हिंदू रीति-रिवाज से शादी की। रीति-रस्मों के बाद गीता ने अपने पर्स से एक लिपस्टिक निकाली, जिसे शम्मी ने उनकी मांग में सिंदूर की जगह लगाया और इस तरह लगभग याहू स्टाइल में ही उनकी शादी हो गई। शादी के रस्मो-रिवाज खत्म होने के बाद शम्मी अपनी नई-नवेली दुल्हन को सबसे पहले अपने दादाजी बशेशरनाथ कपूर से मिलवाने ले गए और आशीर्वाद लिया।

(लेखक, राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)