-संवादी पुरुष थे डॉ. सुरेश अवस्थी: रामबहादुर राय
-राष्ट्रवादी चिंतक की 16वीं पुण्यतिथि पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
वाराणसी, 24 जुलाई (हि.स.)। स्व. सुरेश अवस्थी ने मेरे राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों को तराशा है। वे मात्र मेरे अध्यापक नहीं थे वे हमारे गुरु थे, जिन्होंने सदैव दूसरों को आगे ही बढ़ाया। दूसरों के लिए जीना ही अवस्थी जी की पहचान थी। यह उद्गार जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के हैं। उप राज्यपाल रविवार की शाम काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर रहे राष्ट्रवादी चिंतक डॉ. सुरेश अवस्थी की 16 वीं पुण्यतिथि पर डॉ सुरेश अवस्थी स्मृति न्यास की ओर से आयोजित “भारतीय संस्कृति का वैश्विक प्रभाव” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी को वर्चुअल सम्बोधित कर रहे थे।
उप राज्यपाल ने गोष्ठी में अध्यक्षता करते हुए कहा कि बीएचयू की छात्र राजनीति में स्वतंत्र धारा की चेतना प्रो.अवस्थी के ही नेतृत्व में उभरी। उप राज्यपाल ने कहा कि भारत की छवि को दुनिया में बार-बार विकृत करने का प्रयास किया जाता रहा है, लेकिन आज पूरी दुनिया भारत की ओर आशा भरी निगाहों से देख रही है। वर्तमान भारत आत्मविश्वास एवं प्रतिबद्धता से भरा हुआ है जो आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को साकार कर देगा।
संगोष्ठी में बतौर विशिष्ट अतिथि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री रामबहादुर राय ने कहा कि प्रो. सुरेश अवस्थी संवादी पुरुष थे। अवस्थी जैसे संवादी पुरुष काफी कम मिलते है। संवाद सुनने में सरल लगता है। लेकिन करने में कठिन है। खुले मन से समझने का प्रयास करना ही संवाद है।
वरिष्ठ पत्रकार ने भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव को विस्तार से बताते हुए कहा कि जब से हम दूसरी संस्कृतियों का अनुसरण करने लगे हैं तब से हमारी संस्कृति का प्रभाव कम हुआ है। योग का प्रभाव जिस प्रकार से दुनियाभर में बढ़ा है, वह भारतीय संस्कृति के परचम का नया आयाम है।
इससे पूर्व, मुख्य वक्ता इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि भारत को भाषा के जाल में उलझाए रखा गया ताकि युवा दिग्भ्रमित रहे और अपनी पहचान बनाने में असफल रहे। युवा पीढ़ी सोचने लगी कि भारत के पास ऐसा कुछ नही है जिस पर गर्व किया जा सके। न्यूनता बोध ऐसा समा गया कि आजादी के 75 साल बाद भी कोलोनियल माइंड से उबर नही पाये। आजादी के पहले 1910 में तमिल भाषा के महाकवि सुब्रमण्यम भारती की एक कविता का उल्लेख कर जोशी ने कहा कि दुनियाभर में भारत की संस्कृति ही उसकी पहचान है। भारत की असली ताकत यहाँ की युवा शक्ति है। आवश्यकता है इन्हें सही ढंग से प्रेरित करने की, सही मार्गदर्शन करने की। स्व. अवस्थी युवाओं के लिए ऐसे ही मार्गदर्शक की भूमिका में थे। उन्होंने कहा कि भारत ने पूरे विश्व को एकात्मता का संदेश दिया। किसी देश पर आक्रमण नही किया । इसका पूरा प्रभाव विश्व पर पड़ा। भारत लोकतंत्र की जननी है। भारतीय लोकतंत्र का पॉच हजार साल का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
गोष्ठी को पूर्व एमएलसी डॉ. केदारनाथ सिंह, पूर्व महापौर राम गोपाल मोहले, पूर्व कुलपति डॉ. आद्या प्रसाद पाण्डेय, अजय त्रिवेदी आदि ने भी सम्बोधित किया। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के कामधेनु सभागार में गोष्ठी का विषय स्थापना रूपेश पाण्डेय ने किया। संचालन सुधीर मिश्रा, अतिथियों का स्वागत प्रोफेसर विक्रमादित्य राय, धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर बेचन जायसवाल ने दिया। गोष्ठी में डॉ. हरेंद्र राय, मनोज राय, डॉ. धीरेंद्र राय आदि की मौजूदगी रही।