हरिद्वार, 03 जून (हि.स.)। इस्लाम का परित्याग कर हिन्दू धर्म को धारण करने के बाद संन्यास लेने की इच्छा जता चुके शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी उर्फ जितेन्द्र नारायण सिंह त्यागी के संन्यास लेने पर धर्म संकट के बादल गहरा गए हैं। रिजवी का संन्यासी बनना मुश्किल दिखायी दे रहा है।
वसीम रिजवी ने गाजियाबाद के डासना स्थित काली मंदिर में इस्लाम का त्याग कर हिन्दू धर्म अपना लिया था। जिसके बाद यति नरसिंहानंद गिरि महाराज ने उन्हें नया नाम जितेन्द्र नारायण सिंह त्यागी दिया था। हिन्दू धर्म अपनाने और हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद के बाद रिजवी सुर्खियों में बने रहे। हेट स्पीच मामले में जेल से अंतरिम जमानत पर बाहर आए रिजवी ऊर्फ जितेन्द्र नारायण ने शाम्भवी पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप से संन्यास लेने की इच्छा जतायी थी। इसके बाद स्वामी आनन्द स्वरूप उन्हें निरजंनी अखाड़े लेकर गए और निरंजनी अखाड़े का संन्यासी बनने की बात भी पक्की हो गयी। साथ ही रिजवी को संन्यास के बाद मिलने वाला नया नाम स्वामी कृष्णानंद पुरी भी तय ही हो गया था। 3 से 10 जून के बीच उनकी संन्यास प्रक्रिया होनी थी, लेकिन अब रिजवी के संन्यास पद संकट के बादल छा गए हैं।
संन्यास को लेकर सबसे बड़ा सवाल संत समाज में जो उठ रहा है, वह है रिजवी का शुद्धिकरण। कारण की इस्लाम में रहते हुए रिजवी ने गौ मांस भक्षण किया था, जबकि गौ मांस का भक्षण करना हिन्दू धर्म में महापाप कहा गया है और गौ मांस भक्षण करने वाला हिन्दू नहीं हो सकता, उसे मलेच्छ कहा जाता है। लेकिन यहां तो हिन्दू बनने के बाद संन्यास की तैयारी है। ऐसे में संत समाज ऊहापोह की स्थिति में हैं कि रिजवी का शुद्धिकरण कैसे कराया जाए। इसके लिए संतों ने इस मामले के पटाक्षेप को लेकर काशी विद्वत परिषद के पास यह मामला भेजा है। इस मामले को लेकर संतों में भी अलग-अलग मत हैं। कुछ संन्यास देने का विरोध कर रहे हैं तो कुछ संन्यास देने के पक्ष में नजर आ रहे हैं।