दुर्लभ पाण्डुलिपियों के डिजिटलीकरण के लिये परियोजना बनाकर शासन को भेजने की तैयारी

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सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन पुस्तकालय में संग्रहित दुर्लभ पाण्डुलिपियों के संरक्षण के लिए शासन से सहमति

वाराणसी, 23 अप्रैल (हि.स.)। विश्व पुस्तक दिवस पर सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन पुस्तकालय में संग्रहित 94 हजार दुर्लभ पांडुलिपियों के सरंक्षण और डिजिटलीकरण के लिये परियोजना तैयार हो रही है। शनिवार को विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने बताया कि सरस्वती भवन पुस्तकालय में संग्रहित 94 हजार दुर्लभ पांडुलिपियों जो कि जीर्ण-शीर्ण हो रही हैं ,के संरक्षण एवं संवर्धन के लिये शासन स्तर से सहयोग मिले इसके लिए शीघ्र ही क्रमश: संरक्षण के लिये 47 करोड रुपये तथा डिजिटलाइजेशन के लिये 10 करोड रुपये का परियोजना बनाकर शासन में प्रस्तुत करने का सुझाव दिया गया है।

इस परियोजना को संस्कृति मंत्रालय के माध्यम से धन आवंटित कराकर उसके अधीन डिजिटलीकरण एवं संरक्षण किया जायेगा। उन्होंने बताया कि इससे पाण्डुलिपियों के संवर्धन के लिये लाल कपड़ों को एक विशेष रसायन के लेप लगाकर व्यवस्थित किया जायेगा तथा इसके द्वारा इसका अध्ययन/शोध और प्रकाशन भी किया जायेगा। इसके संरक्षण के सारे मार्ग प्रशस्त कर कार्य किये जायेंगे।

उन्होंने बताया कि सरस्वती भवन पुस्तकालय में दुर्लभ पांडुलिपियों का भंडार है। इसमें हस्तलिखित एक हजार साल पुरानी श्रीमद्भागवत प्रमुख है। यह देश की प्राचीनतम पांडुलिपि है। इसी तरह स्वर्णपत्र आच्छादित, लाक्षपत्र पर कमवाचा (वर्मी लिपि) यहीं संग्रहित है।

स्वर्णाक्षरयुक्त रास पंचाध्यायी (सचित्र) की सूक्ष्म कलात्मकता अनुपम है। यहां वेद, कर्मकांड, वेदांत, सांख्य, योग, धर्मशास्त्र, पुराणेतिहास, ज्योतिष, मीमांसा, न्याय वैशेषिक, साहित्य, व्याकरण व आयुर्वेद की दुर्लभ पांडुलिपियां रखी हैं। इसके अलावा बौद्ध, जैन, भक्ति, कला और संगीत के विषय भी संरक्षित किए गए हैं। इसमें अनमोल ज्ञान भंडार संग्रहित हैं। जो कि सभी जनों के लिये उपयोगी सिद्ध होगा। कुलपति ने बताया कि सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना 1791 में कर्णघंटा मोहल्ले में हुई थी। वर्ष 1907 में प्रिंस ऑफ वेल्स के निरीक्षण के बाद संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर में सरस्वती भवन का निर्माण हुआ जो वर्ष 1914 में पूर्ण हुआ। इसके बाद यह भवन विश्वविद्यालय में पूरी तरह से पुस्तकालय बन गया।

क्यों मनाया जाता है विश्व पुस्तक दिवस

विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस पुस्तक के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में भी जाना जाता है, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा पढ़ने , प्रकाशन और कॉपीराइट को बढ़ावा देने के लिए आयोजित एक वार्षिक कार्यक्रम है । विवि के कुलपति प्रो.हरेराम त्रिपाठी ने बताया कि पहला विश्व पुस्तक दिवस 1995 में 23 अप्रैल को मनाया गया था ।