चिकित्सा अनुसंधान में बढ़ना चाहिए महिलाओं का प्रतिनिधित्व

Share

लखनऊ, 09 मार्च (हि.स.)। संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में कार्डियोलॉजी विभाग के टेलीमेडिसिन सभागार में महिलाओं के स्वास्थ्य विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसका शुभारम्भ एसजीपीजीआई के निदेशक डाॅ.आरके धीमान ने किया।

डॉ रूपाली खन्ना ने कहा कि इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र की थीम “एक स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता” है। उन्होंने कहा कि महिलाएं स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसके बावजूद अनुसंधान और नेतृत्व में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है। महिलाओं पर उनके पेशे के साथ-साथ परिवार की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी होती है, इस कारण उनमें अवसाद होने का खतरा बढ़ जाता है।

कार्डियोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. आदित्य कपूर ने कहा कि महिलाएं आज घरेलू और पेशेवर सहित विभिन्न क्षेत्रों में पुरुषों के बराबर हैं। भारतीय महिलाएं परिवारों की प्राथमिक देखभाल करने के बावजूद, अक्सर अपने स्वयं के स्वास्थ्य की अनदेखी करती हैं। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य के मुद्दों में लैंगिक असमानता को दूर करने और महिलाओं में हृदय सम्बंधी विकारों के बोझ को कम करने के लिए सभी पुरुषों और महिलाओं को एक मंच के तहत एक साथ आने की जरूरत है।

एसजीपीजीआई की इम्यूनोलॉजी विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सीता नाइक ने कहा कि वास्तविक परिवर्तन तभी आ सकता है जब महिलाएं सत्ता में आसीन हों क्योंकि वे महिलाओं की समस्याओं को बेहतर ढंग से समझ सकती हैं। एसजीपीजीआई के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रो. सत्येंद्र तिवारी ने कहा कि हृदय रोग से पीड़ित महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। इन रोगियों में गर्भावस्था से पहले पूर्व परामर्श कई युवा महिलाओं को बचा सकता है।