– मंडलायुक्त के निर्देश पर एसीएम द्वितीय जाजमऊ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का करने पहुंचे थे निरीक्षण
कानपुर, 28 मार्च, (हि.स.)। जनपद में गंगा को निर्मल व स्वच्छ अविरल धारा बनाने के लिए केन्द्र व राज्य सरकार के प्रयासों पर अफसर पानी फेरने में लगे हैं। इसका उदाहरण उस वक्त देखने को मिला जब मंडलायुक्त के गंगा में गिर रहे सीवेज मामले का संज्ञान लिया गया था।
इस मामले में अफसरों ने अपर नगर मजिस्ट्रेट द्वितीय को नोडल अधिकारी बनाया गया। उनके जाजमऊ एसटीपी निरीक्षण के दौरान जल निगम के गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई परियोजना प्रबंधक नदारत मिले। इस पर परियोजना प्रबंधक की लापरवाही बरते जाने के चलते उनका वेतन रोकने के आदेश दिए गए हैं।
गौरतबल है कि, जाजमऊ से एसटीपी मार्ग का निरीक्षण करने को मंडलायुक्त डॉ राजशेखर ने अपर नगर मजिस्ट्रेट द्वितीय को नोडल अधिकारी बनाया था। नोडल अधिकारी द्वारा इस मामले में जाजमऊ एसटीपी का निरीक्षण गया। निरीक्षण के दौरान मौके पर कोई भी कार्य होना नहीं पाया गया।
नोडल अधिकारी द्वारा निरीक्षण में सरैया चौराहे के पास खुले गड्ढे में कोई भी काम नहीं होता पाया गया। इसके साथ ही गड्ढा काफी गहरा और उसमें काफी गंदगी थी। इस प्रदूषण के कारण बीमारी फैलने का भी खतरा है तथा सड़कें काफी टूटी हुई थी। साथ ही जल निगम के गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई परियोजना प्रबंधक ज्ञानेंद्र चौधरी भी अनुपस्थित रहें। इस दौरान पाया गया कि उनके द्वारा लगातार अपने कार्यों में रुचि ना दिखाने व कार्यों में निरंतर शिथिलता बरती जा रही है। इसको गंभीरता से लेते हुए अग्रिम आदेशों तक उनका वेतन रोकने के निर्देश दिए गए।
बता दें कि, जाजमऊ चुंगी से एसटीपी मार्ग (सीवेज शोधन प्लांट) पर लगभग 2 वर्ष पूर्व जल निगम द्वारा सीवर लाइन बिछाने एवं टेनरी एफल्युन्ट के लिए कन्वेनस चैनल की सफाई का कार्य संपादित कराया गया, जिसके कारण कई स्थानों पर काफी लंबाई से मार्ग क्षतिग्रस्त हो गया। जल निगम द्वारा क्षतिग्रस्त मार्ग का रेस्टोरेशन नहीं कराया गया। कुछ स्थानों पर पैच मरम्मत का कार्य कराया गया है तथा मार्ग का अधिकांश भाग अभी भी क्षतिग्रस्त अवस्था में है, जिससे यातायात संचालन में कठिनाई हो रही है। इसके साथ ही दुर्घटना की आशंका बनी हुई है।
प्रकरण को संज्ञान में लेकर आयुक्त डॉ राजशेखर द्वारा दिए गए निर्देश के क्रम में जल निगम द्वारा उक्त मार्ग को अधिक निर्माण कराए जाने का आश्वासन दिया गया था। इस मामल में जल निगम द्वारा अपने कार्यों में निरंतर शिथिलता बरतते हुए लापरवाही की जा रही थी। जिसके फलस्वरुप अग्रिम आदेशों तक परियोजना प्रबंधक का वेतन रोके जाने के निर्देश दिए गए।