देहरादून :- अचानक से सियासी फिजा में यह बात फैल गई है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी दो सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि आधिकारिक तौर पर न तो मुख्यमंत्री ने और न ही, उनके भाजपा पार्टी संगठन ने इस तरह की कोई बात कही है।
इन स्थितियों के बीच, चुनावी माहौल में 2017 में मुख्यमंत्री रहते हुए हरीश रावत के दो सीटों से चुनाव की चर्चा भी निकल पड़ी है। उत्तराखंड की राजनीति में दो सीटों से चुनाव का प्रयोग हरीश रावत से पहले किसी ने नहीं किया था और उसमें वह बुरी तरह नाकाम साबित हुए थे। अब सवाल ये ही है उठ रहा है कि यदि दो सीटों से चुनाव लड़ने का मुख्यमंत्री का जरा सा भी मन है, तो क्या वह हरीश रावत से कोई सबक लेंगे।
इसमें कोई शक नहीं कि खटीमा सीट मुख्यमंत्री के लिए सबसे मुफीद है, लेकिन दो सीटों की बात यदि चल निकली है, तो बात सिर्फ मुख्यमंत्री के चुनाव जीतने की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करने की भी है। ऐसे में खटीमा से दो बार चुनाव जीत चुके धामी वहां की आस-पास की सीटों के नतीजों को तो प्रभावित करेंगे ही, यदि वह कहीं और से भी चुनाव लड़ते हैं, तो संबंधित क्षेत्र की अन्य सीटों पर भी उसका असर पड़ सकता है।
वैसे, 2017 से पहले जितने भी मुख्यमंत्री हुए, उन्होंने एक सीट से ही चुनाव लड़ा। एनडी तिवारी, बीसी खंडूरी, विजय बहुगुणा, हरीश रावत के मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने उपचुनाव भी लड़ा। 2017 में कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत यह आंकलन नहीं कर पाए कि स्टिंग ऑपरेशन से उनके खिलाफ बनी लहर इस कदर प्रभावी होगी कि वह दोनों सीट से चुनाव हार जाएंगे। वैसे, पहले यह माना जा रहा था कि वह पहाड़ और मैदान की एक-एक सीट को अपना चुनाव क्षेत्र बनाएंगे। इस क्रम में पहाड़ की सीट बतौर केदारनाथ का नाम सबसे शीर्ष पर था, लेकिन बाद में हरीश रावत ने दोनों मंडलों की एक-एक मैदानी सीट को ही तय कर लिया। हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा की सीटों पर उन्हें सफलता नहीं मिली और अपेक्षाकृत उनसे काफी जूनियर स्वामी यतीश्वरानंद और राजेश शुक्ला क हाथों उन्हें पराजय झेलनी पड़ी।
धामी को मुख्यमंत्री बतौर काम करने के लिए काफी कम वक्त मिला है। ऐसे में दो सीटों पर चुनाव लड़ने के फैसले में भरपूर जोखिम भी जानकारों को नजर आता है। फिर मुख्यमंत्री बनने से पहले धामी की गिनती भाजपा के दिग्गजों में भी नहीं रही है। ऐसे में खटीमा से इतर अन्य क्षेत्र का भी रुख करना जानकारों की नजर में बहुत आसान नहीं है। वैसे, यह आने वाले दिनों में भाजपा हाईकमान को ही तय करना है कि वह अपने युवा मुख्यमंत्री के लिए क्या सोच कर चल रही है।