देहरादून :- आम आदमी पार्टी (आप) के मुख्यमंत्री उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल ने कहा कि सीडीएस जनरल बिपिन रावत मेरे लिए मेंटोर थे, उनके आकस्मिक निधन पर स्तब्ध हूं, उनके साथ मैंने अनमोल पल बिताए। उन्होंने फौज में रहते हुए मिशन को बखूबी अंजाम दिया।
कर्नल अजय कोठियाल ने भावुक होते हुए कहा कि बिपिन रावत जी हम सबके साथ ही पूरे देश के लिए प्रेरणास्रोत थे। उनके साथ मेरा और मेरे परिवार का पारिवारिक रिश्ता था। वो हमेशा से मेरे मेंटोर रहे और रहेंगे। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा। मेरा सौभाग्य रहा की उनके साथ मुझे काम करने का मौका मिला।
उन्होंने बताया बिपिन रावत के पिताजी ने गोरखा रेजीमेंट में सिपाही के पद से लेकर लेफ्टिनेंट जनरल के पदों में रहकर देश सेवा की, जिससे प्रेरणा लेकर बिपिन रावत भी सेना के सर्वोच्च पद पर रहने के बाद सीडीएस जैसे अहम पद पर पहुंचे। कर्नल कोठियाल ने कहा कि उन्होंने फौज में रहते हुए जो भी मिशन लिए उनको बखूबी अंजाम दिया। उनकी कार्यशैली के सभी मुरीद थे।
कर्नल कोठियाल ने बताया कि बिपिप रावत में हिम्मत और जज्बा अंदर बचपन से ही था। जब 1978 में आईएमए से पास आउट हुए तो उन्होंने भी अपने पिताजी की तरह 11 गोरखा रेजीमेंट को चुना। अहम पदों पर रहते हुए और कई सफल मिशन को लीड करते हुए उन्होंने भारतीय सेना में अपनी वीरता से मिशाल पेश की।
इसके बाद उन्होंने मेजर जनरल रहते हुए बारामुला में भी आतंकियों के खात्मे के लिए एक बड़ा अभियान चलाते हुए नार्थ ईस्ट इंडिया में चीन के खिलाफ एक सफलतापूर्वक अभियान चलाया। जब वो देश के पहले सीडीएस बने और देश के साथ साथ उत्तराखंड का नाम भी रोशन भी किया।
उन्होंने अपनी यादों को साझा करते हुए कहा, ‘मैं जब मेजर के पद पर था उस दौरान मेरी पहली मुलाकात बिपिन रावत से हुई थी।इसके बाद जब मैं दिल्ली में 4 गढ़वाल राइफल्स को कमांड कर रहा था तब उस दौरान मेरे द्वारा एक पहाड़ी पार्टी का आयोजन किया गया, जिसमें बिपिन रावत, अजित डोभाल, राजेन्द्र सिंह, अनिल धस्माना समेत उत्तराखंड के बड़े सैन्य अधिकारी मौजूद रहे। इसके अलावा उन्होंने कहा,जब म्यांमार में इंटरनेशनल प्रोजेक्ट के दौरान हमारा किडनैप हुआ था, तब सीडीएस बिपिन रावत ने ही मध्यस्थता करते हुए हमें दुश्मनों के चंगुल से बाहर निकलने में मदद की थी और उसके बाद उन्होंने भारत की सैन्य सुरक्षा हमें उपलब्ध कराई थी जिस वजह से हमारा प्रोजेक्ट पूरा हुआ था’।
कोठियाल ने बताया कि मेरे आग्रह पर 2019 में वो अपनी पत्नी के साथ गंगोत्री आए और जहां पर उन्होंने स्वामी सुंदरानंद आश्रम में लगभग 5 घंट व्यतीत किए और उत्तराखंड से जुड़े कई मुद्दों पर हमारी बातचीत भी हुई।
इसी दौरान उनकी धर्मपत्नी को गंगोत्री काफी पसंद आया था और उन्होंने इस जगह पर दोबारा एक हफ्ते रहने की बात कही थी, लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था और आज बेहद दुखद खबर ने सबको अंदर तक झकझोर कर रख दिया। आज वो हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन वो हमेशा याद आयेंगे।