NGT एनजीटी का आदेश और प्रतिबंध के बावजूद धड़ल्ले से बिक रही है पॉलिथीन

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गाजियाबाद। प्रतिबंध के बावजूद पालीथिन की बिक्री में कोई कमी नहीं आयी है। महानगर में थोक मंडियां किराना मंडी रामनगर गाजियाबाद,अनाजमंडी गोविंदपुरम और घंटाघर में करोड़ों रूपये की पालीथिन गोदामों में भरी पड़ी है। जब कभी प्रतिबंधित पालीथिन की बिक्री की सूचना अखबारों की सुर्खियां बनती हैं तो नगर निगम के अधिकारी छापेमारी का नाटक करने बाजार में उतर जाते हैं। और थोड़ी बहुत पालीथिन की जब्ती और छोटा-मोटा जुर्माना वसूल कर इतिश्री कर ली जाती है। 

बताते चलें कि पालीथिन पर्यावरण की सबसे बड़ी दुश्मन है। इसलिए दशकों पहले केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय इसको प्रतिबंधित कर चुका है। इसकी बिक्री, भंडारण और उपयोग करने तक पर सजा का प्रावधान किया गया है। सजा चाहे आर्थिक हो अथवा जेल जाना, दोनों ही हो सकती हैं।

पालीथिन को चलन से बाहर करने के लिए जिला प्रशासन के अलावा स्थानीय निकायों तक को अधिकार प्रदान किए गए हैं। लोगों में इसका चलन कम करने के लिए अरसा पहले ग्रीनमैन के नाम से मशहूर विजयपाल बघेल ने झपटो आंदोलन भी शुरू किया था। इस आंदोलन का मकसद किसी को प्रताड़ित करना नहीं था, बल्कि यह था कि लोगों में जागरूकता आए और सामान खरीदने बाजार निकलने से पहले अपने साथ कपड़े का थैला ले लें। इसके अलावा कई बार सरकारी स्तर पर अभियान भी चलें लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। 

यह बात सोलह आने सच है कि पालीथिन पर्यावरण की सबसे बड़ी दुश्मन है! पर बड़ा सवाल यह है कि एक तरफ पालीथिन निर्माण में लगी फैक्ट्रियां बदस्तूर जारी है और सरकार,सरकारी निकाय पालीथिन को बंद कराने की बात कर रहे हैं।

जागरूक लोगों का कहना है जब तक पालीथिन फैक्ट्रियां बंद नहीं करवायीं जाएंगी। तब तक इसको चलन से बाहर नहीं किया जा सकता। अकेले रामनगर किराना मंडी में आज इसी वक्त
छापेमारी की जाए तो कई करोड़ रूपये मूल्य की पालीथिन जब्त की जा  सकती हैं।

इसके अलावा पालीथिन का दूसरा सबसे अड़ा मार्केट है गोविंदपुरम अनाजमंडी। जानकारों का तो यहां तक कहना है कि यहां अनाजमंडी के कारण अफसरों को विश्वास ही नहीं होता कि यहां भी पालीथिन बिकती होगी यही कारण है कि धंधा आराम से फलफूल रहा है। इसके बाद पैकेजिंग में इस्तेमाल होनी वाली पालीथिन की मंडी घंटाघर स्थित पुरानी मुंसिफी में है। ये पालीथिन की घोषित मंडी है। यहां सभी व्यवसायी वाकायदा जीएसटी रजिस्ट्रेशन लेकर ही काम कर रहे हैं। इस मंडी मिलनी तो चाहिए केवल और केवल पैकेजिंग में इस्तेमाल में होने वाली पालीथिन लेकिन कुछ दुकानदार आर्डर पर दूसरे काम/अर्थात वन टाइम यूज होने वाली पालीथिन भी उपलब्ध करवा देते हैं। 

गाजियाबाद महानगर में पालीथिन का कारोबार करोड़ों रूपये महिना है। सवाल घूम फिर कर वहीं आन खड़ा होता है कि अगर पालीथिन को प्रतिबंधित किया गया है तो उसका उत्पादन क्यों हो रहा है। क्या केवल सब्जी मंडी, दूध, पनीर और अन्य दुग्ध उत्पाद बेचने वाली डेयरी (दुकानों) के अलावा छोटी- छोटी परचून की दुकानों पर कार्रवाई करने मात्र से पालीथिन का प्रयोग रोका जा सकता है।  

जानकार कहते हैं कि पालीथिन का प्रयोग/बिक्री रोकने के लिए इसका उत्पादन करने वाली इकाइयों को ही रोकना होगा अन्यथा कितने ही प्रयास क्यों न किया जाए पालीथिन का उपयोग बंद हो सकता है और न इसकी बिक्री।