दिलीप कुमार के साथ पहली बार फिल्मी पर्दे पर और देश से पहले विदेश में देखे गए उत्तराखंड के पहाड़

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– देश से पहले विदेश में लांच होने वाली पहली फिल्म थी मधुमती, नैनीताल जनपद के भवाली-घोड़ाखाल के बीच हुई थी इस फिल्म की अधिकांश शूटिंग

नैनीताल :- हिंदी फिल्मों के ‘ट्रेजडी किंग’ दिलीप कुमार के अवसान पर बुधवार को सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने कहा, हिंदी फिल्मी दुनिया के दो ही दौर हैं, दिलीप कुमार से पहले और दिलीप कुमार के बाद। उत्तराखंड और खासकर नैनीताल के पर्वतीय क्षेत्र के बारे में भी कह सकते हैं कि यहां भी फिल्मों के लिहाज से दो ही दौर हैं, एक दिलीप कुमार से पहले और दूसरा दिलीप कुमार के बाद। वास्तव में दिलीप कुमार से पहले का कोई दौर ही नहीं है, क्योंकि इससे पहले यहां किसी भी फिल्म की शूटिंग नहीं हुई थी। साल 1958 में यहां दिलीप कुमार-वैजयंती माला अभिनीत बिमल रॉय के निर्देशन में मधुमती फिल्म की लगातार छह माह तक शूटिंग हुई थी। यहां इस फिल्म के तीन गीत- सुहाना सफर और ये मौसम हसीं, चढ़ गयो पापी बिछुवा और जंगल में मोर नाचा किसी ने ना देखा… फिल्माए गए। पूरी दुनिया के सामने यहां के पहाड़ों की खूबसूरती सामने आई। इसके बाद यहां फिल्मों की शूटिंग की लाइन ही लग गई और अब तक 100 से अधिक बड़़ी और हजारों छोटी-बड़ी फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है।

मधुमती फिल्म के बारे में यह भी खास है कि यह देश में रिलीज होने से पहले चेक गणराज्य के प्राग में आयोजित हुए कारलोव वैरी अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में लांच हुई थी और इसके कुछ माह बाद मुंबई में इसका प्रीमियर हुआ। इस तरह विदेश में लांच वाली देश की पहली फिल्म का रिकॉर्ड भी मधुमती के नाम पर ही है। इस तरह पहली फिल्म में ही नैनीताल और उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की खूबसूरती देश से पहले विदेश में देखी गई। साथ ही मधुमती अपने समय की इतनी बड़ी हिट फिल्म साबित हुई कि इसने नौ फिल्म फेयर अवार्ड जीते। उसका यह रिकॉर्ड 37 साल बाद दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे तोड़ पाई। 1995 में इस फिल्म ने 11 फिल्म फेयर अवार्ड जीते।

मधुमती फिल्म न केवल यहां फिल्माई गई थी, बल्कि यह कहना भी गलत न होगा कि यह फिल्म यहीं के परिवेश और संस्कृति में रच बस गई थी। इस फिल्म का पूरे परिवेश, नायिका वैजयंती माला के वस्त्र विन्यास, पहाड़ी घाघरा-पिछौड़ा और गले में हंसुली, जॉनी वॉकर सहित फिल्म में अन्य पुरुषों-महिलाओं का पहनावा आदि बहुत कुछ तत्कालीन कुमाऊंनी और पर्वतीय लोक संस्कृति से ओत-प्रोत थे। फिल्म का पार्श्व संगीत गीत एवं नाटक प्रभाग में कार्यरत रहे सत्य नारायण ने तैयार किया था। इसके गीतों में संगीत देने में प्रसिद्ध कुमाऊंनी गीत ‘बेड़ू पाको बारों मासा’ के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से प्रशंसा प्राप्त कर चुके मोहन उप्रेती और उनकी पत्नी नईमा खान उप्रेती का भी सहयोग रहा था।

फिल्म का गीत ‘चढ़ गयो पापी बिछुवा’ तो पूरी तरह से कुमाऊंनी लोक शैली में भी गाया और फिल्माया गया था। गौरतलब है कि पुनर्जन्म पर आधारित इस फिल्म की पूरी कहानी भवाली में मौजूदा टीआरएच के शीर्ष की पहाड़ी पर बने मिस्टर रे के बंगले के इर्द-गिर्द घूमती है, जहां नायक दिलीप कुमार बारिश के कारण एक रात के लिए फंस जाते हैं, वहां उन्हें अपने पूर्व जन्म की प्रेमिका वैजयंती माला की स्मृतियां हो आती हैं, जिसकी हत्या कर दी गई होती है। दिलीप को इस जन्म में भी वैजयंती माला मिल जाती हैं, उसकी मदद से वह पूर्व जन्म में की गई हत्या का बदला लेते हैं। यही कहानी बाद में दीपिका पादुकोण की बॉलीवुड में पदार्पण करने वाली फिल्म ओम शांति ओम में भी दोहराई गई। मिस्टर रे के इस बंगले को वर्ष 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने फिल्म संग्रहालय के रूप में विकसित करने का आश्वासन बिमल रॉय की पुत्री रिंकी रॉय भट्टाचार्य को दिया।

दो बार नैनीताल आए थे दिलीप कुमार

दिवंगत अभिनेता दिलीप कुमार हालांकि मधुमती फिल्म की शूटिंग के लिए निकटवर्ती भवाली में रहे थे और फिल्म की अधिकांश शूटिंग यहीं भवाली से घोड़ाखाल के बीच वर्तमान उजाला, उत्तर वाहिनी शिप्रा नदी आदि क्षेत्रों एवं कुछ रानीखेत में हुई थी। इस बीच दिलीप कुमार एक बार इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक बिमल रॉय के साथ नैनीताल आए थे और यहां हरि संकीर्तन सभा में आयोजित शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम में भी शामिल हुए थे। इस कार्यक्रम में शामिल रहे और ‘भारतीय सिनेमा के 100 वर्ष और नैनीताल’ आलेख लिखने वाले नगर के वरिष्ठ रंगकर्मी के अनुसार इस दौरान दिलीप साहब ने एक शास्त्रीय गीत भी गाया था। बिमल रॉय और दिलीप कुमार द्वारा इस दौरान रजिस्टर में किए गए हस्ताक्षर अभी भी यहां सुरक्षित हैं। गुरुरानी बताते हैं इसके अलावा दिलीप साहब 1960-70 के दशक में पंडित नारायण दत्त तिवारी के चुनाव प्रचार के लिए नगर के मल्लीताल स्थित रामलीला मैदान में मधुमती फिल्म के अपने साथी कलाकार जॉनी वॉकर के साथ आए थे। अलबत्ता इसी दौरान उनका स्वास्थ्य अचानक खराब हो गया था। इस कारण उन्हें यहां से भाषण दिए बिना लौटना पड़ा था। गौरतलब है कि दिलीप कुमार ने पं. तिवारी के लिए 1991 के चुनाव में नैनीताल लोकसभा का हिस्सा रहे बहेड़ी में चुनावी सभा में भाषण दिया था। पं. तिवारी यह चुनाव हार गए थे। बाद में पंडित तिवारी ने इन पंक्तियों के लेखक के समक्ष अपनी टीस व्यक्त की थी कि दिलीप साहब के संबोधन से हुई एक गलतफहमी के कारण वह यह चुनाव हार गए।