संसार से सुलझने का मार्ग है साधना -श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज
स्वाधीनता का मार्ग कठिन नहीं, पराधीनता से छूटना कठिन –भावलिंगी संत आचार्य विमर्श सागर जी
पहला सीतापुर
स्थानिय दिग्मम्बर जैन मन्दिर महमूदाबाद में विराजमान ससंघ पूज्य भावलिंगी सन्त आदर्श महाकवि राष्ट्र्योगी श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज ने दैनिक धर्म सभा को संबोधित करते हुये कहा कि हम सभी इस महान आध्यात्मिक ग्रंथ श्री योगसार जी के माध्यम से आत्मा के सहज निग्रंथ स्वभाव को जानने का, समझने का प्रयास कर रहे हैं। किसी ने प्रश्न किया कि साधना क्या है? अपने आदम स्वरूप को जानकर मानकर, उसी में स्थिर हो जाना ही साधना है। मन की चंचलताओं का रुक जाना ही साधना है। इन्द्रिय विषयों से मन का हट जाना ही साधना हैं। पर में उलझने का नहीं पर सुलझने का मार्ग है साधना। अनादि से जीव इन्द्रिय विषयों एवं मन के अधीन रहा है। जब इन्द्रिय विषयों में पराधीनता रहेगी तब तक स्वाभाविक स्वाधीनता का मार्ग मिलने वाला नहीं हैं। स्वाधीनता कठिन नहीं है, पराधीनता से छूटना कठिन लगता है। पराधीनता से मुक्ति हमें इसलिये कठिन लगती है क्योंकि आजतक हमने स्वभाव की महिमा को जाना ही नहीं। जब वस्तु स्वभाव की महिमा भीतर आती है तब इन्द्रिय विषयों की पराधीनता क्षणभर में टूट जाती हैं। आत्मा के सहज शुद्ध स्वभाव की श्रद्धा करो यहीं से मोक्ष का संपर्क मार्ग प्रारंभ होता है। एक लघु उदाहरण अज समझाने का प्रयास करते हैं। जिस प्रकार रसोई तैयार करते
समय आपकी अवसाधानी से पात्र में जो खाद्य पदार्थ पक रही थी जम गई सिर्फ वस्तु ही नहीं हो पात्र भी काला पड़ गया। जब बर्तन माँजने वाली भाई तो उसने तुरंत निर्णय कर लिया किया यह यात्रा अपनी स्वभाव में नहीं है। कालापन इस बर्तन का स्वभाव नहीं है, वर्तन तो अव्वल है और अपनी उज्ज्वलता अपने में लिये हुये हैं। उसने उज्ज्वल करने भी स्वच्छता को चलता को स्मृति में रखकर उरते साफ करना पुरुषार्थ विक्रया पुरुषार्थ किसलिये किया जा रहा है
इसलिए किया जा रहा है जो मलिनता से इसकी उज्ज्वलादक गई वो पुनः प्रकाशित हो । भव को बढ़ने का साफ करने के लिये ऐसा कर प्रयोग करती हैं। साबुन लगाते ही वर्तन धीरे -धीरे स्वछ होने लगा और कुछ ही समय में वह बर्तन साफ नजर आता है, अपने स्वभाव में आ जाता है जिसप्रकार मलीन बर्तन साफ हो गए। उसी प्रकार आत्मा रूपी पात्र श्री परपदार्थों के अति राजादि भावों में मलिन हो रहा है। सर्वप्रथम रामादि भावो की मलिनता कारण जानकर मानकर उनसे बचने का प्रयास एवं तप संयम प्राषिक की साबुन लगाकर जब साफ करते हैं तो आत्मा के स्वच्छ करने का यह महान पुरुषार्थी वास्विकता में सच्ची साधना होती है।।