नई दिल्ली: आपदाओं को ध्यान में रखकर विशेषज्ञ ऐसे घरों को बनाने पर जोर दे रहे हैं, जिसमें लोहे-सीमेंट का कम इस्तेमाल होने के बावजूद भी ज्यादा टिकाऊ हो। क्योंकि ऐसे घरों से पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचता है। आपको बता दें कि डेनिश द्वीप लइसो में समुद्री शैवाल ईलग्रास से एक खास तरह का घर बनाया जाता है। इन घरों में ना ही कभी जंग लगता है और ना ही कीड़े लगने का डर होता है। भूकंप जैसी आपदा में भी ईलग्रास से बने घर मजबूती से टिके रहते हैं। डेनमार्क के लइसो द्वीप में ऐसे कई घर बने हुए हैं। समुद्री शैवाल के इस्तेमाल से बने ये घर कई पीढ़ियों तक टिकते हैं। 17वीं सदी से ही इस तरह अनोखे घर बनाए जा रहे हैं।
बता दें कि लइसो द्वीप पर समुद्र से नमक बनाने का उद्योग काफी फला-फूला और उद्योग-धंधों के लिए पेड़ों को काफी तेजी से काटा गया। पेड़ों की तेजिनसे कटाई होने के कारण लकड़ियों की आपूर्ति कम हो गई, तभी समुद्री घासों से घर बनाने का काम शुरू हुआ।
समुद्र के बीचोंबीच बसे होने के कारण इस द्वीप को एक फायदा और हुआ। बहुत बार जहाज या पोत समुद्र में किसी दुर्घटना का शिकार हो जाते और टूट-फूटकर द्वीप के तट से लग जाते थे। ऐसे में लोग इन लकड़ियों को जमा करके इनसे अपना घर बनाने लगे और छतों के लिए समुद्री शैवाल का इस्तेमाल करते थे।
हालांकि, साल 1920 में समुद्री घास में एक फंगल संक्रमण हुआ। इसके बाद से ही लोग शैवाल का इस्तेमाल बंद करने लगे। धीरे-धीरे ये घर इतने कम हो गए कि आज 1800 लोगों की आबादी वाले द्वीप पर सिर्फ 36 ऐसे घर हैं, जिनकी छतें शैवालों से बनी हैं।
साल 2012 में दोबारा इस तरह के घरों को बनाने का शुरू हो गया, जिसके बारे में ‘बीबीसी’ की एक रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है। ‘ईलग्रास’ समुद्री शैवाल की वो खास किस्म है, जिसका इस्तेमाल घर बनाने में किया जाता है।
ईलग्रास को काफी खास इसलिए माना जाता है, क्योंकि ये आग नहीं पकड़ती, न ही इसमें जंग लग सकती है और न ही इनमें किसी तरह के कीड़े लगने का डर रहता है। सबसे खास बात ये है कि ईलग्रास कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर लेती है, इस तरह से घरों में रहने वालों को किसी एयर प्यूरिफायर की जरूरत नहीं होती है।