आगरा: 23 अप्रैल की उस सुबह मेरा सूरज डूब गया। सुबह सात बजेे की बात है। पति रवि अग्रवाल को चार-पांच दिन से बुखार था। घर पर दवाएं ले रहे थे। सुबह उठे तो उन्हें तेज बुखार था। उनकी सांसें फूलने लगीं थीं। सुबह आठ बजे मैंने बेटी को भेज सड़क से ऑटो लाने को कहा। पति को ऑटो में लेकर सीधे खतैना स्थित एक डॉक्टर की क्लीनिक पर गई। वहां उन्होंने हालत देखकर कहा इनमें कोविड के लक्षण हैं। अस्पताल में भर्ती कराओ। उन्होंने मानस नगर स्थित एक अस्पताल के लिए रेफर किया। उसी ऑटो में पति को लेकर अस्पताल पहुंची, तो वहां ऑटो में बैठे मेरे पति की हालत देखकर स्टाफ ने कहा, यहां ऑक्सीजन नहीं है। बेड भी नहीं है… हम भर्ती नहीं कर सकते। कहीं और ले जाओ…। उन्होंने कहा ये नहीं बचेेंगे…। मैं घबरा गई। अस्पताल स्टाफ केसामने हाथ जोड़कर रोई और गिड़गिड़ाई मेरे पति को भर्ती कर लो…।
मैंने कहा, आप भर्ती कर लो अगर कुछ हो जाएगा इन्हें तो मैं जिम्मेदार होंगी। उन्होंने भर्ती नहीं किया…। फिर मैं गंभीर हालत में पति को लेकर एसएन मेडिकल कॉलेज की इमरजेंसी पहुंची। रास्ते में उनकी सांसें उखड़ गईं। वो सांस नहीं ले पा रहे थे।
इमरजेंसी पहुंचे तो वहां 20 मिनट तक उन्हें कोई ऑटो से उतारने तक नहीं आया। इमरजेंसी के गेट पर मेरे पति की मुंह से जीभ बाहर निकल आई। मैं बदहवास हो गई…। मैंने अपनी परवाह नहीं की… मुझे तो अपना पति अपनी जान से ज्यादा प्यारा था। अपने मुंह से मैंने उन्हें सांस दी… मैं अपनी जान देकर भी उन्हें बचा लेती लेकिन सिस्टम से हार गई। (रोते हुए) मैं कितनी अभागी हूं जो मेरे पति ने मेरी गोद में दम तोड़ दिया…। उस दिन अगर उन्हें ऑक्सीजन मिल जाती तो आज वो जीवित होते।
उन्हें मुंह से सांस देने के बाद मैं तीन दिन बीमार रही। गले में खराश, हल्का बुखार आया। गर्म पानी व दवा से ठीक हो गई। भगवान मुझे ले लेता… मेरा पति दे देता…। परिवार में अब कोई कमाने वाला नहीं है। किराये के मकान में रहती हूं। बेटी की पढ़ाई कैसे होगी… अब कैसे जीवन कटेगा, मुझे पता नहीं..।
सतयुग में सावित्री यमराज से जीत गई थी, वह अपने पति के प्राण उससे छीन लाई थी, लेकिन आज की सावित्री महामारी में सिस्टम के यमराजों से हार गई। बता दें कि अपनी जान पर खेल कर भी पति को नहीं बचा पाई। ऑक्सीजन संकट के उस भयावह दौर में पति को मुंह से सांस देकर बचाने की कोशिश करने वाली रेनू अग्रवाल की तस्वीर देशभर में वायरल हुई थी।