सपा कार्यालय पर मनाई गई महारानी अहिल्याबाई होल्कर की जयंती

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गाजियाबाद। न्यायप्रिय, नारीशक्ति, साहस और वीरता की प्रतीक वीरांगना राजमाता महारानी अहिल्याबाई होलकर की जयंती समाजवादी पार्टी कार्यालय गाजियाबाद 4,आरडीसी पर मनाई गई। समाजवादी पार्टी के पदाधिकारियों,कार्यकर्ताओं एवं साथियों ने कोविड-19 नियमों का पालन करते हुए उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए।

इस अवसर पर विचार गोष्ठी आयोजित की गई। इस दौरान जिला अध्यक्ष राशिद मलिक, जिला महासचिव वीरेंद्र यादव एडवोकेट प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। इस अवसर पर जिला अध्यक्ष राशिद मलिक एवं वीरेंद्र यादव एडवोकेट जिला महासचिव ने अपने विचार रखते हुए कहा की। अहमदनगर के जामखेड में चोंडी गांव में जन्मी महारानी अहिल्याबाई मालवा राज्य की होलकर रानी थीं, जिन्हें लोग प्यार से राजमाता अहिल्याबाई होलकर भी कहते हैं। मालवा की है रानी एक बहादुर योद्धा और प्रभावशाली शासक होने के साथ-साथ कुशल राजनीतिज्ञ भी थी। उनके नैतिक आदर्श, जनहितकारी कार्य व उनका प्रेरणादायी जीवन चिरस्मरणीय है।उनके पिता मनकोजी राव शिंदे, गांव के पाटिल यानी कि मुखिया थे।

जब गांव में कोई स्त्री-शिक्षा का ख्याल भी मन में नहीं लाता था। तब मनकोजी ने अपनी बेटी को घर पर ही पढ़ना-लिखना सिखाया। 1733 को अहिल्याबाई का विवाह 8 वर्ष की उम्र में मालवा राज्य के राजा मल्हार राव होलकर के पुत्र खांडेराव के साथ हुआ।1754 में कुम्भार के युद्ध के दौरान उनके पति खांडेराव होलकर वीरगति को प्राप्त हुए। इस समय अहिल्याबाई केवल 21 साल की थीं!
साल 1766 में जब उनके ससुर भी दुनिया को अलविदा कह गए तो उनको अपना राज्य ताश के पत्तों के जैसा बिखरता नज़र आ रहा था।

वृद्ध शासक की मृत्यु के बाद राज्य की ज़िम्मेदारी अहिल्याबाई के नेतृत्व में उनके बेटे मालेराव होलकर ने संभाली। पर विधाता का आखिरी कोप उन पर तब पड़ा जब 5 अप्रैल, 1767 को शासन के कुछ ही दिनों में उनके जवान बेटे की मृत्यु हो गयी। अपने इस दुःख के साये को उन्होंने शासन-व्यवस्था और अपने लोगों के जीवन पर नहीं पड़ने दिया। उन्होंने शासन-व्यवस्था को अपने हाथ में ले लिया।11 दिसंबर, 1767 को वे स्वयं इंदौर की शासक बन गयीं। उन्होंने अपने विश्वसनीय सेनानी सूबेदार तुकोजीराव होलकर (मल्हार राव के दत्तक पुत्र) को सेना-प्रमुख बनाया।इंदौर उनके 30 साल के शासन में एक छोटे से गांव से फलते-फूलते शहर में तब्दील हो गया। मालवा में किले, सड़कें बनवाने का श्रेय अहिल्याबाई को ही जाता है।

इसके अलावा वे त्योहारों और मंदिरों के लिए भी दान देती थी। उनके राज्य के बाहर भी उन्होंने उत्तर में हिमालय तक घाट, कुएं और विश्राम-गृह बनाए और दक्षिण में भी तीर्थ स्थानों का निर्माण करवाया। अहिल्याबाई ने अयोध्या, हरद्वार, कांची, द्वारका, बद्रीनाथ आदि शहरों को भी सँवारने में भूमिका निभाई। उनकी राजधानी माहेश्वर साहित्य, संगीत, कला और उद्योग का केंद्रबिंदु थी।
अहिल्याबाई हर दिन लोगों की समस्याएं दूर करने के लिए सार्वजनिक सभाएं रखतीं थीं। उन्होंने हमेशा अपने राज्य और अपने लोगों को आगे बढ़ने का हौंसला दिया।

उनके शासन के दौरान सभी उद्योग फले-फुले और किसान भी आत्म-निर्भर थे। हिंदू और मुस्लमान दोनों धर्मों के लोग सामान भाव से अहिल्याबाई का सम्मान करते थे। रानी अहिल्याबाई ने 70 वर्ष की उम्र में अपनी अंतिम सांस ली । जयंती समारोह में प्रमुख रूप से श्रीमती कमलेश चौधरी जिला अध्यक्ष महिला सभा श्रीमती राज देवी चौधरी पूर्व महिला आयोग सदस्य रमेश यादव एडवोकेट वरिष्ठ नेता मनोज पंडित पूर्व महानगर अध्यक्ष यु जनसभा मनोज चौधरी लाल सिंह यादव राहुल यादव रवि बेघर ताहिर हुसैन कृष्ण यादव सौदान सिंह गुर्जर धीरज चौधरी राजन कश्यप जिला उपाध्यक्ष आरिफ चौधरी रवि पाल अनिल पाल जगदीश पाल योगेश पाल आशु अब्बासी प्रोफेसर भुवन जोशी रविंद्र प्रताप राजू सोनी इरशाद प्रधान युसूफ मलिक रोहित युवा विनोद यादव थोड़ा जगदीश भाई अवनीश यादव बृजपाल यादव मंजूर खान संजीव कुमार कुशल पाल यादव अरविंद कटोरिया नईम कुरैशी मोहम्मद ताहिर हुसैन जिला सचिव समीर खान बॉबी पंडित इमरान रिजवान आदि मौजूद रहे।