वन भूमि लीज का उत्तराखंड में अन्य उपयोग किया तो मिलेगा ये दंड, नीति हुई तय

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देहरादून। उत्तराखंड में लीज पर दी गई वन भूमि को लेकर नीति तय कर दी गई है। मंत्रिमंडल ने लीज के नवीनीकरण और नई लीज की स्वीकृति को नीति तथा वन भूमि मूल्य अथवा वार्षिक लीज रेंट को लेकर नीति निर्धारण पर मुहर लगा दी। नई नीति में लीजधारक ने भू-उपयोग बदलकर वन भूमि का अन्य कार्यों में उपयोग किया तो उससे प्रीमियम से पांच गुना धनराशि दंड स्वरूप वसूल की जाएगी। लीजधारक ने वन भूमि का खुद उपयोग नहीं कर उसे किसी अन्य व्यक्ति को बेच दिया तो उसके खिलाफ वन संरक्षण अधिनियम के तहत आपराधिक मामले दर्ज किए जाएंगे। 

प्रदेश सरकार ने नौ सितंबर, 2005 को राज्य में लीज नीति निर्धारित की थी। उक्त लीज नीति को 15 वर्ष बीत चुके हैं। इस बीच विभिन्न योजनाओं, परियोजनाओं व कार्यों के लिए आवंटित की गई वन भूमि के संदर्भ में उक्त लीज नीति का मूल्यांकन करने पर इसमें बदलाव की जरूरत महसूस की गई। मंत्रिमंडल ने गुरुवार को जिस लीज नीति को मंजूरी दी, उसमें व्यवस्था को और स्पष्ट और सरल बनाया गया है।

सरकारी विभागों के लिए लीज नवीनीकरण मुफ्त 

पेयजल, सिंचाई, गूल, घराट, पंचायतघर, रास्ता व स्कूल जैसे सामुदायिक एवं जनोपयोगी प्रयोजनों के लिए सरकारी संस्थाओं को दी गई लीज का नवीनीकरण प्रत्येक मामले में मुफ्त किया जाएगा। गैर सरकारी या निजी संस्थाओं के लिए 100 रुपये वार्षिक लीज रेंट की दर से यह कार्य होगा। कृषि एवं बागवानी के लिए कृषि, उद्यान, पशुपालन आदि विभागों को दी गई वन भूमि की लीजों का नवीनीकरण मुफ्त होगा। पट्टा देने वाले और लेने वाले के बीच 100 रुपये या गुणांकों में लीज रेंट लिया जाएगा।

गैर सरकारी व निजी संस्थाओं को एक हेक्टेयर तक लैंड होल्डिंग के लिए 100 रुपये प्रति नाली की दर से वार्षिक लीज रेंट लिया जाएगा। ऐसे लीजधारकों के पास एक हेक्टेयर से ज्यादा वन भूमि है तो जिलाधिकारी द्वारा सूचित वर्तमान बाजार दर का लीज अवधि 90 रुपये प्रीमियम मूल्य के रूप में व प्रीमियम धनराशि का दो फीसद वार्षिक लीज रेंट लिया जाएगा। घर, छप्पर, झोपड़ी, गोशाला के लिए दी गई लीजों का नवीनीकरण सरकारी विभागों के लिए मुफ्त होगा। गैर सरकारी या निजी लीजधारक के पास एक नाली तक वन भूमि है तो उनसे वन भूमि का मूल्य न लेकर केवल 100 रुपये प्रति नाली की दर से वार्षिक लीज रेंट लिया जाएगा।

व्यावसायिक इस्तेमाल को दी गई दीर्घकालिक लीजों के नवीनीकरण के लिए नीति तय की गई है। मंदिरों-आश्रमों के लिए नीति तयमंदिर, आश्रम, धर्मशाला व कुटिया के लिए दी गई लीज का नवीनीकरण वन एवं पर्यावरण विभाग की ओर से गठित उच्चस्तरीय समिति के तीन श्रेणियों में वर्गीकृत कर किया जाएगा। किसी धर्मग्रंथ में वर्णित स्थल या पुरातात्विक प्रमाणों या ऐतिहासिक साक्ष्यों से प्रमाणित स्थल, जिन्हें पूजा स्थल या पंथ के श्रद्धा स्थल के रूप में चिह्नित किया गया हो, ऐसी वन भूमि की लीज का नवीनीकरण मुफ्त होगा।

ऐसे स्थल को संरक्षित व विकसित करने का काम राज्य सरकार करेगी। पट्टा प्रदाता व लेने वाले के बीच अनुबंध के आधार पर 100 रुपये या गुणांकों में लीज रेंट लिया जाएगा। केंद्र व राज्य सरकार के पर्यावरण, वचन, कृषि, शिक्षा, उद्यान, मृदा व जल संरक्षण, औषधीय, चिकित्सा एवं अनुसंधान से जुड़े गैर वाणिज्यिक संस्थानों को दी गई लीज का नवीनीकरण 100 रुपये वार्षिक लीज रेंट पर किया जाएगा। 

सरकारी विभागों को 90 वर्ष तक लीज

राज्य सरकार के सभी विभागों के गैर व्यवसायी, जनोपयोगी कार्यों के लिए वन भूमि हस्तांतरण के बाद अल्पकालीन व दीर्घकालीन अवधि के लिए वन भूमि की लीज मुफ्त मिलेगी। वन भूमि का मूल्य भी नहीं लिया जाएगा। पट्टा देने व लेने वाले के बीच करार के तौर पर प्रतिकरात्मक रूप से 100 रुपये या गुणांकों में लीज रेंट लिया जाएगा। दीर्घकालीन लीज 30 वर्ष के लिए दी जाएगी। इसे 30-30 वर्ष के लिए दो बार बढ़ाया जा सकेगा। अधिकतम लीज अवधि 90 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।

ग्राम पंचायतों को सूक्ष्म हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए भूमि

इन जनोपयोगी कार्यों में स्कूल, डिस्पेंसरी, अस्पताल, बिजली या दूरसंचार की लाइन, पेयजल, वर्षा जल संग्रहण के ढांचे, लघु सिंचाई नहर, गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत, कौशल विकास व व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र, बिजलीघर, संचार पोस्ट, सड़क चौड़ीकरण, बीआरओ के मौजूदा पुल शामिल किए गए हैं। ग्राम पंचायत और शहरी निकायों की ओर से सामुदायिक शौचालयों के लिए वन भूमि लीज पर मिलेगी। ग्राम पंचायतों व स्वयं सहायता समूहों को सामुदायिक उपयोग के लिए वन भूमि पर प्रस्तावित एक मेगावाट तक क्षमता की सूक्ष्म जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण को 100 रुपये प्रति नाली की दर से वार्षिक लीज रेंट लिया जाएगा।