मलबा जमा होने से ऋषिगंगा नदी पर बनी झील का 150 मीटर भाग महज पांच मीटर चौड़ा

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 देहरादून: जलप्रलय के बाद उच्च हिमालयी क्षेत्र में ऋषिगंगा नदी में मलबे के चलते बनी झील की कुल लंबाई 300 मीटर के करीब है। राहत की बात यह है कि इसका 150 मीटर भाग महज पांच मीटर ही चौड़ा है। हालांकि, मुहाने पर और इसके आसपास झील की अधिकतम चौड़ाई लगभग 50 मीटर पाई गई है। झील का विश्लेषण करने के बाद यह जानकारी उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) और डीआरडीओ की डिफेंस टेरेन रिसर्च लेबोरेटरी (डीआरटीएल), नई दिल्ली ने साझा की।

यूसैक निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट ने इस विश्लेषण से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी अवगत करा दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि झील से खतरे जैसी कोई बात फिलहाल नजर नहीं आ रही है।यूसैक निदेशक डॉ. बिष्ट के मुताबिक झील 10 मीटर तक गहरी है। हालांकि, अधिकांश भाग पांच मीटर चौड़ा होने के चलते इसमें अधिक पानी जमा नहीं है। झील में जमा पानी बिल्कुल साफ है। इसका मतलब यह हुआ कि इसमें मलबा नहीं है और ग्लेशियर से निकलने वाला पानी ही शामिल है। इससे यह भी पता चलता है कि जिस मलबे के चलते झील बनी, वह आपदा के समय का ही है और अब अतिरिक्त मलबा जमा नहीं होगा। जितना पानी झील में आ रहा है, उतने ही पानी की निकासी भी हो रही है। लिहाजा, अब झील का आकार बढऩे की आशंका नहीं रह गई है। डीआरटीएल के निदेशक डॉ. लोकेश सिन्हा भी झील की धरातलीय स्थिति का आकलन कर चुके हैं। उनका भी मानना है कि अब झील का आकार बढ़ेगा नहीं, कम जरूर हो सकता है।

झील के आगे 500 मीटर क्षेत्र में फैला है मलबा

डीआरटीएल के निदेशक डॉ. लोकेश सिन्हा ने बताया कि जिस मलबे के चलते झील का निर्माण हुआ है, वह झील के आगे करीब 500 मीटर तक फैला है। मलबा अभी कच्ची अवस्था में है। मलबे के नीचे बर्फ के टुकड़े और कुछ बोल्डर हैं। इसके चलते भी मलबा ठोस अवस्था में नहीं आ पा रहा। हालांकि, बर्फ धीरे-धीरे पिघल रही है और उसी अनुपात में मलबा भी नीचे नदी की तरफ खिसक रहा है। यह अच्छी बात है कि मलबा एक साथ नहीं, बल्कि कम मात्रा में खिसक रहा है। इस तरह माहभर में झील खाली हो सकती है या इसका पानी बेहद कम हो जाएगा। मलबे का धीरे-धीरे कम होना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यहां पर नदी की ढाल सीढ़ीदार है। अगर तेज गति से मलबा पानी के साथ खिसकेगा तो नदी की रफ्तार भी बढ़ जाएगी।