किसानों ने बदला अपना नारा, दिल्ली चलो नही दिल्ली घेरों की लगाई आवाज़

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गाजियाबाद। किसान आंदोलन किसी तरह भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस आंदोलन में लगातार तेजी आ रही है। जहां यूपी दिल्ली बॉर्डर इस आंदोलन का अखाड़ा बन चुका है। निश्चित रूप से किसानों की बढ़ती संख्या से जहां एक और शासन प्रशासन तनाव में आ रहा है। दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर किसानों के प्रदर्शन में रातभर देशभक्ति का गाना चलता रहा। किसानों का नया नारा अब ‘दिल्ली चलो’ नहीं बल्कि ‘दिल्ली घेरो’ है। दिल्ली के 5 प्वाइंट पर किसान अब धरना देंगे।

इस संबंध में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने केंद्र सरकार पर हमला बोला।उन्होंने कहा कि सरकार की नीयत पर सवाल उठ रहे हैं। जब सरकार की नीयत साफ होगी तब हल निकल जाएगा। बुराड़ी कोई व्हाइट हाउस नहीं है कि किसान वहां जाएं। इस बीच यूपी गेट पर बैठे शमली से आए एक किसान दिवेंद्र मलिक ताऊ ने कहा कि यहां रह के कोई फायदा नहीं है। हम काला कानून रद्द करने आए हैं। हम दिल्ली की सारे बॉर्डर बंद करेंगे। हमारे पास 6 महीने तक का राशन है। हमें आपके खाने की जरूरत नहीं है। वोट मांगने के लिए गृह मंत्री और प्रधानमंत्री के पास समय है लेकिन हम लोगों से मिलने के लिए नहीं है। हम इनका हुक्का पानी बंद करेंगे।

गौरतलब है कि किसान आंदोलन का असर आम लोगों पर पड़ा है और लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। दिल्ली के पास हाईवे पर जाम की स्थिति बन गई है और दफ्तर जाने वालों को भारी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ ही भीड़ की वजह से कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। जबकि किसानों ने ट्रैक्टर पर तिरपाल डालकर इसे ही अपना घर बना लिया है। ठंड से बचने के लिए रजाई-कंबल भी लाए गए हैं।सड़क पर अलाव जल रहा है लेकिन सर्द रातों में इस अलाव की गर्मी से कहीं ज्यादा तपिश किसानों के गुस्से की आग से बढ़ रही है।

सड़क पर सोये और अलाव जलाकर बिताई किसानों ने रात, जिस वक्त हम लोग गरम कंबल और गर्म रजाई ओढ़ कर चैन की नींद सो रहे थे, उस वक्त यूपी बॉर्डर पर किसान कड़ाके की सर्दी में अलाव जलाकर सड़क पर किसी तरह रात गुजारने की जद्दोजहद कर रहे थे। निश्चित रूप से 29 नवंबर की रात किसानों ने कड़ाके की ठंड में सड़क पर गुजारी, जहां न सोने का इंतजाम था ना ठंड से बचने का पूरा प्रबंध लेकिन किसानों के हित और आंदोलन को सफल बनाने के लिए हर तरह का कष्ट झेलते हुए उन्होंने रात बिता रहे है। ऐसे संबंध में मेरठ से आए अशोक सिंह नामक किसान ने बताया कि ना तो उन्हें सर्दी की फिक्र है और ना ही किसी कष्ट को झेलने में दिक्कत।

यह वक्त आराम का नहीं यह वक्त संघर्ष का है और अंतिम सांस तक हर किसान संघर्ष करने के लिए घर से निकला है। जब तक यह काला कानून वापस नहीं होगा तब तक हम चैन से नहीं बैठेंगे। यह आंदोलन और तेज होगा चाहे हमें अपनी जान देनी पड़े।