नई दिल्ली :- पितृ पक्ष के पहले दिन बुधवार को लोगों ने पुरखों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए गंगा तट त्रिवेणी घाट पर पहुंचकर सपरिवार डुबकी लगार कर तर्पण किया। लोगों ने ब्राह्मणों, साधुओं एवं भिक्षुओं को भोज करवाकर दान-दक्षिणा दी। घाट पर विद्वान आचार्यों ने वैदिक रीति रिवाज से सामूहिक जलदान तर्पण कर्मकांड व श्राद्ध कर्म संपन्न कराया।
क्या है महत्व
ज्योतिषाचार्ययों का मानना है कि पितृ पक्ष में हमारे पूर्वजों की आत्मा हमारे निवास स्थल पर आती है। श्रद्धा से उनका अन्न, प्रसाद या तर्पण से स्वागत करना, उन्हें परम तृष्टि देना उनके प्रति अपनी श्रद्धा है। वह आशीर्वाद में हमें उन्नति, वैभव-समृद्धि और परिवार में शांति और भाईचारे की समरसता बनी रहने का प्रसाद देते हैं। पौराणिक मान्यता है कि भगवान वाराह की अवतरण स्थली सूकरक्षेत्र में श्राद्ध कर्म सर्वोपयुक्त माना गया है।
पितृपक्ष के प्रारंभ होते ही मंगलवार की सुबह सोरों स्थित हरिपदी गंगा घाट पर श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला प्रारंभ हो गया। यहां सुबह से ही पितरों को तर्पण करने के लिए लोग पहुंचने लगे। भले ही प्रशासन की गंगा घाटों पर चौकसी रही।
शूकर क्षेत्र सोरों के तीर्थ पुरोहितों के मुताबिक मंगलवार को सुबह हरिपदी गंगा घाट पर श्रद्धालुओं का पहुंचने का सिलसिला प्रारंभ हुआ। लेकिन, प्रशासनिक एवं पुलिस की रोक के चलते श्रद्धालुओं की संख्या कम रही। गंगा घाट के एक कोने में स्थित लक्ष्मण घाट पर पुलिस का पहरा नहीं था। वहां पहुंचकर श्रद्धालुओं ने विधि विधान पूर्वक अपने पितरों का तर्पण किया। इसके पश्चात गरीबों एवं ब्राह्मणों को भोज करा कर पितृपक्ष की इस परंपरा को पहले दिन संपन्न कराया।
यहां के तीर्थ पुरोहित एवं गंगा सभा के अध्यक्ष सतीश भारद्वाज के मुताबिक मंगलवार को पूर्णमासी का दिन होने के कारण राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, से तमाम तीर्थयात्री कछला घाट पर पहुंचे हैं। लेकिन, कोरोना के चलते प्रशासन ने इन तीर्थयात्रियों को गंगा स्नान करने से रोका है।