प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के एक बार कहने पर अपने देश के लिए अमेरिका की नासा छोड़कर भारत लौटने वाले प्रसिद्ध वैज्ञनिक डॉ. रमेश चंद त्यागी निवासी मेरठ का शनिवार को निधन हो गया।
बता दें कि देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जिस प्रोजेक्ट के लिए रमेश चंद त्यागी को नासा से बुलवाया था, वो अचानक बन्द कर दिया गया था। इतना ही नहीं राजनीतिक कारणों से रमेश त्यागी और उनके साथ आए एक साथी को कई आरोपों से जूझना पड़ा था।
इसके चलते ही अपने को निर्दोष साबित करने के लिए इस वैज्ञनिक ने 30 साल की लंबी लड़ाई भी लड़ी। हालांकि बाद में रमेश चंद त्यागी को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से नवाजा था।
रमेश त्यागी अपने परिवार के साथ बुढ़ाना गेट पर रहते थे। उनके पुत्र अमेरिका में अच्छे पदों पर हैं। पिछले कुछ वर्षों से रमेश त्यागी विवि कैंपस में फिजिक्स विभाग से जुड़े हुए थे। उनका अंतिम संस्कार ब्रजघाट होगा।
अमेरिका में खूब सराहा गया था डा. त्यागी का काम
नासा में काम करते हुए डा. रमेश चंद त्यागी ने नासा के लिए दो पेटेंट अर्जित किए थे और वहां वे इसी तरह की एक परियोजना पर काम कर रहे थे। सेमी कंडक्टर टेक्नोलॉजी और इन्फ्रा रेड डिटेक्शन पर त्यागी के काम को अमेरिका में काफी सराहा भी गया था।
पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने बुलाया था भारत
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिका की प्रमुख वैज्ञानिक शोध एजेंसी नासा में काम कर रहे भारतीय वैज्ञानिक रमेश चंद्र त्यागी को भारत आने का न्यौता दिया था। डा. त्यागी ने देश के लिए काम करने की बात सुनते ही नासा से भारत आने के लिए मंजूरी ले ली और यहां आ गए। 1972 में भारत आकर रमेश चंद्र त्यागी ने भारत आकर इस परियोजना पर काम शुरू किया। भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के एक लैब सॉलिड स्टेट फिजिक्स लेबोरेट्री में उन्हें प्रमुख वैज्ञानिक अधिकारी के तौर पर विशेष नियुक्ति दी गई थी।
हालांकि बाद में संबंधित परियोजनाओं में कुछ अड़चन आ गईं और वह बंद करनी पड़ी लेकिन त्यागी बीच मझदार में फंस गए। उन्होंने तय किया कि वे हारकर अमेरिका नहीं लौटेंगे बल्कि भारत में रहकर ही यह लड़ाई लड़ेंगे।