नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को निर्भया के दोषियों को अंगदान करने या मरने के बाद मेडिकल रिसर्च के लिए अपना शरीर दान में देने का विकल्प देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “मृत्यु सबसे दुखद होती है, जबकि दान स्वैच्छिक होना चाहिए।” इस संबंध में बंबई हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश माइकल सल्दान्हा ने एक जनहित याचिका दायर की थीं।
न्यायमूर्ति आर. बानुमति की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को मानवीय दृष्टिकोण रखने के लिए कहा।
याचिका में सल्दान्हा ने कहा कि चार दोषियों को मौत की सजा दी गई है और शीर्ष अदालत उनके शरीर को मेडिकल रिसर्च (चिकित्सा अनुसंधान) के लिए तिहाड़ जेल अधिकारियों को निर्देश दे सकती है। याचिका में कहा गया कि अंगों को दान करने का विकल्प देने से गंभीर रूप से बीमार लोगों का जीवन बच सकता है।
इस पर शीर्ष अदालत ने कहा, “किसी व्यक्ति को फांसी की सजा परिवार के लिए सबसे दुखद हिस्सा है। आप (याचिकाकर्ता) चाहते हैं कि उनका शरीर टुकड़ों में कट जाए। कुछ मानवीय दृष्टिकोण दिखाइए। अंगदान स्वैच्छिक होना चाहिए?”
इससे पहले शीर्ष अदालत ने चार दोषियों में से एक पवन गुप्ता द्वारा दायर एक उपचारात्मक (क्यूरेटिव) याचिका को खारिज कर दिया। यह फैसला चारों दोषियों को दी जाने वाली फांसी से एक दिन पहले आया। 25 साल का गुप्ता इस मामले में अकेला ऐसा दोषी बचा था, जिसने अभी तक उपचारात्मक याचिका के अपने कानूनी विकल्प को बचाए रखा था।
गुप्ता ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका भी दायर की है।
वहीं अन्य दोषी अक्षय सिंह ने अभी तक अपनी दया याचिका की अस्वीकृति को चुनौती नहीं दी है।
16 दिसंबर 2012 को दक्षिणी दिल्ली में एक 23 वर्षीय फिजियोथेरेपी इंटर्न का चलती बस में सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। इस दौरान युवती के साथ काफी बेरहमी की गई और उसे अधमरा कर दिया गया, जिसके बाद युवती ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था।