श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन योजना : मोदी सरकार जुटी गांवों की शहरों से रेस कराने में

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नई दिल्ली। आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले के कुछ गांवों में कभी पीने के पानी की बहुत दिक्कत थी। कोंडा लक्ष्मीपुरम गांव में तो सिर्फ छह हैंडपंप थे। यह हाल तब था जबकि यह गांव ब्लॉक मुख्यालय से महज एक किलोमीटर की दूरी पर था। यहां आस-पास के कुल 19 गांवों में पानी की बेहद गंभीर समस्या थी। मोदी सरकार ने इन 19 गांवों को आपस में जोडक़र एक क्लस्टर बना दिया। और फिर 16 करोड़ रुपए खर्च कर 10 हजार लीटर की क्षमता वाली पानी की टंकी के साथ अन्य कई योजनाएं शुरू कीं और अब हर घर नल का जल मिल रहा है।

इसी राज्य के वाईएसआर कडप्पा के नंदलौर इलाके में एक बड़ी आबादी रोजगार का संकट झेल रही थी। केंद्र सरकार ने 60 लाख की लागत से पहले यहां स्किल डेवलपमेंट ट्रेनिंग सेंटर खोला और फिर महिलाओं को ब्यूटीशियन से लेकर सिलाई-कढ़ाई की जहां ट्रेनिंग मिल रही है वहीं युवाओं को गाड़ी चलाने से लेकर कंप्यूटर की ट्रेनिंग की व्यवस्था देकर रोजगार से जोडऩे पर जोर दिया जा रहा। इस क्लस्टर में दो करोड़ रुपए का सरकार ने निवेश किया। पंजाब के अमृतसर जिले में हरसे छीना ऐसा गांव है जहां स्टेडियम बन गया है।

कुछ इसी तरह मोदी सरकार कई गांवों का समूह बनाकर वहां शहरों जैसी सुविधाएं बढ़ाने में जुटी है। यह सब हो रहा है श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन के तहत। 21 फरवरी 2016 से शुरू हुई श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन योजना के तहत फिलहाल तमाम गांवों को जोड़ते हुए तीन सौ सेंटर(क्लस्टर) बनाए जा रहे हैं। योजना की चौथी वर्षगांठ पर 21 फरवरी को एक हजार नए क्लस्टर बनाने का ऐलान हुआ है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधिकारियों ने आईएएनएस को बताया कि इस योजना का मकसद गांवों में शहरी सुविधाओं का विकास करना है ताकि गांव भी विकास के मामले में शहरों से रेस करते दिखें। क्योंकि देश की 68 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गांवों में रहती है ऐसे में स्मार्ट शहर ही नहीं स्मार्ट विलेज योजना पर भी काम करना जरूरी है। दरअसल शहरों की तरफ तेजी से हो रहे पलायन से चिंतित मोदी सरकार चाहती है कि गांवों में सुविधाएं बढ़ाकर वहीं आबादी रोकी जाए।

सरकार ने इस योजना के तहत नारा दिया है- शहर क्यों जाएं, जब शहर की सुविधा गांव में पाएं। इस मिशन के तहत मोदी सरकार कई गांवों का क्लस्टर बनाकर वहां शहरों की तर्ज पर विकास काम कर रही है। मोदी सरकार की इस योजना के तहत विकास के ऐसे मॉडल पर काम किया जा रहा, जिसमें आत्मा गांव की हो और सुविधा शहर की हो। इस योजना के लिए अब तक सरकार 21 हजार करोड़ रुपए का बजट रख चुकी है।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन की ही देन है जो छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के सोनहाट के स्कूल में बच्चे स्मार्ट क्लास में पढ़ाई करते हैं। हरियाणा के रेवाड़ी के कोसली क्लस्टर के गांवों में शहरों की तरह स्ट्रीट लाइटें लग गईं हैं। क्योंकि यहां पावर सब स्टेशन भी बन गया है। मोदी सरकार का कहना है कि पांच से दस गांवों के बीच में एक या दो गांव ऐसे होते हैं, जहां पर बाजार आदि सुविधाएं होने के कारण लोग कुछ खरीदारी करने जाते हैं।

सरकार ने तय किया कि शहरीकरण की संभावनाओं वाले ऐसे गांवों को सेंटर बनाकर आस-पास के गांवों को जोडक़र विकास करना चाहिए। सरकार का मानना है कि बाजार की सुविधा वाले गांवों में साल दर साल आबादी बढ़ती रहती है। ऐसे में अगर क्लस्टर बनाकर आस-पास के गांवों का विकास किया जाए तो शहरों की तरफ ग्रामीण आबादी को बढऩे से रोका जा सकता है।

प्रधानमंत्री मोदी अपने एक पुराने बयान में कह चुके हैं कि भारत के आर्थिक विकास को भी सिर्फ पांच या 50 बड़े शहरों के आधार पर नहीं चलाया जा सकता है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैले 125 करोड़ आबादी के देश में अगर लोगों को रोजगार देना है तो नीचे से शुरुआत करनी होगी। ये रुर्बन यानी अर्बन और रूरल को मिलाकर जो कल्पना है, उसमें उसको ग्रोथ सेंटर बनाने की कल्पना है। मकसद है कि आर्थिक विकास की गतिविधि का गांव भी केंद्र बिंदु बनें।

इस योजना को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पहले ही कह चुके हैं कि छोटे-छोटे बाजार होंगे, कारोबार अगल-बगल के 5-10 गांवों के लिए चलता होगा तो धीरे-धीरे वो रुर्बन यानी ऐसे गांव जो शहरीकरण से युक्त बन जाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी कह चुके हैं कि रुर्बन मिशन के सफल होने पर छोटे गांव में डॉक्टरों और शिक्षकों के न जाने की समस्या दूर हो जाएगी। वहीं ग्रामीणों के जीवन स्तर में भी सुधार होगा।

गांवों में क्या होंगी सुविधाएं :
 24 घंटे पानी, कचरा प्रबंधन, सार्वजनिक परिवहन, लघु एवं मध्यम उद्योग, नागरिक सेवा केंद्र, डिजिटल साक्षरता, स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास, खेल संरचना, स्किल डवलपमेंट।