चंडीगढ़। दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पंजाब में अपनी सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल ( शिअद) और हरियाणा में गठबंधन सरकार में शामिल जननायक जनता पार्टी (जजपा) को भाव नहीं दिया। शिअद और जजपा, दोनों ही क्षेत्रीय पार्टियां भाजपा के साथ मिल कर चुनाव लड़ने की इच्छुक थीं, लेकिन बात नहीं बन पाई. सवाल यह है कि क्या शिअद और जजपा नेताओं को अब दिल्ली में भाजपा उम्मीदवारों की मदद करनी पड़ेगी?
भाजपा के साथ दिल्ली में शिअद के साथ गठबंधन टूटने से पंजाब की सियासत पर असर पड़ेने के आसार हैं। अकाली दल की तरफ से जहां दिल्ली में चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर दी गई है, वहीं जजपा ने भी दिल्ली विधानसभा चुनावों में अपने उम्मीदवार खड़े करने से इनकार कर दिया है। लेकिन भाजपा की पंजाब और हरियाणा इकाइयों ने दिल्ली चुनाव में पार्टी उम्मीदवारों की मदद के लिए कमर कस ली है।
किसी से भी छुपा नहीं है कि शिअद और भाजपा में खटास दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। शिअद को अपने अंदरुनी झगड़े भी झेलने पड़ रहे हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि शिअद जहां गांवों से पंथक वोट बैंक की राजनीति कर पंजाब में सत्ता प्राप्त करता रहा है, वहीं भाजपा शहरों में पैठ बना कर सरकार में हिस्सेदारी डालती आई है, लेकिन वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में अकाली दल-भाजपा गठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा था। देश भर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद पंजाब में इस गठबंधन को जीत नसीब नहीं हो पाई थी।
पंजाब में भाजपा के तमाम नेता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि पंजाब में शिअद के साथ आगे बढ़ना नुकसानदेह रहेगा। पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व से सुखदेव सिंह ढींढसा और उनके बेटे परमिंदर सिंह ढींढसा जैसे टकसाली लीडर भी नाराज हैं। दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व प्रधान मनजीत सिंह जीके भी सुखबीर बादल से दूरी बना कर ढींढसा के साथ चल पड़े हैं।
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को लगता है कि शिअद कुछ समय से भाजपा के विरुद्ध राजनीति करता आया है। नागरिकता संशोधन बिल पर शिअद ने उल्टी-सीधी बयानबाजी कर भाजपा हाईकमान को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी। श्रीअकाल तख्त साहिब की तरफ से आरएसएस के खिलाफ फतवा जारी करने और आरएसएस चीफ मोहन भागवत के बयान की निंदा करना भी शिअद और भाजपा के बीच खटास का एक बड़ा कारण बताया जा रहा है। भाजपा के पूर्व मंत्री मास्टर मोहन लाल और मदन मोहन मित्तल का खुलेआम भाजपा की स्टेज से यह कहना कि पंजाब में अब हमें अपनी सरकार बनानी होगी, इस खटास को जाहिर करता है।
भाजपा की तरफ से पंजाब में आने वाले दिनों में तीखी राजनीति करने की तैयारी की जा रही है। बूथ स्तर पर भाजपा के कार्यकर्ताओं की कमेटियों का गठन किया जा रहा है। अकाली दल के प्रभाव वाले विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी के तेजतर्रार नेताओं को जिम्मेदारियां दी जा रही हैं। पूर्व मंत्री मदन मोहन मित्तल का कहना है कि पंजाब में भाजपा अब छोटे नहीं, बल्कि बड़े भाई की भूमिका में है और शिअद को यह समझ लेना चाहिए कि मनमर्जी से सीट देने की बातें नहीं की जा सकती। शिअद को उतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ेगा, जितनी भाजपा आलाकमान की तरफ से उनको दी जाएंगी।
शिअद के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने घोषणा की है कि सीएए और एनआरसी पर भाजपा से मतभेद के कारण दोनों पार्टियों में दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन नहीं हो पाया। लेकिन कहा यह जा रहा है कि दोनों पार्टियों में सीटों के मामले पर बात नहीं बन पाई और इसी कारण दोनों दलों का लंबे समय से चला आ रहा गठबंधन टूट गया। शिअद अपने पार्टी निशान ‘तराजू’ पर चुनाव लड़ना चाहता था, जबकि भाजपा उसे दो सीटों पर ‘कमल’ के निशान पर चुनाव लड़वाना चाहती थी, जबकि दो सीटें शिअद को देना चाहती थी। मिल कर चुनाव लड़ने के मामले को लेकर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और शिअद नेताओं के बीच लंबी वार्ता चली, लेकिन इसका कोई हल नहीं निकला पाया. दोनों दलों में किसी एक मुद्दे पर जब सहमति नहीं बन पाई तो गठबंधन टूट गया।
उधर, जजपा के मुखिया और हरियाणा के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने भी स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनावों में अपने उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारेगी। उन्होंने कहा कि अपने गठन के बाद से जजपा ने जींद उप चुनाव ‘कप प्लेट’, लोकसभा चुनाव ‘चप्पल’ और विधानसभा चुनक ‘चाबी’ के निशान पर लड़े थे। यह तीनों ही चुनाव निशान दिल्ली में निर्वाचन आयोग की तरफ से पहले ही दूसरी पार्टियों को दिए जा चुके हैं। ऐसे में किसी नए चुनाव निशान पर जजपा अपने उम्मीदवारों को चुनाव नहीं लड़ाना चाहती। उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने यह भी साफ़ किया है कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ता चुनावों में भाजपा उम्मीदवारों की पूरी ताकत से मदद करेंगे। उन्होंने कहा है कि भाजपा ने नए बने राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने दो बार उनसे बात कर मिलकर चुनाव लड़ने के लिए कहा है। उन्होंने कहा कि सीएए के मुद्दे पर देश में भ्रम फैलानी वाली पार्टियों के खिलाफ लड़ना जरूरी भी है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि हरियाणा विधानसभा चुनावों में दस सीटें जीतने और भाजपा के साथ मिल कर गठबंधन सरकार बना लेने के बाद जजपा हरियाणा की सीमा से लगती दिल्ली की कम से कम दस सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारने की इच्छुक थी। इस मुद्दे पर पार्टी के भीतर विचार विमर्श करने और भाजपा के साथ दिल्ली में चुनावी गठबंधन करने के लिए एक समिति भी गठित की गई थी, लेकिन भाजपा ने अचानक से अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर यह सन्देश दे दिया कि भाजपा का जजपा के साथ चुनावी गठबंधन होना मुश्किल है।
बहरहाल, जजपा की हरियाणा के बाहर पार्टी का विस्तार की योजना फ़िलहाल ठिठक गई है। दुष्यंत चौटाला कह रहे हैं कि भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार पूरे पांच साल चलेगी, इसलिए शायद जजपा दिल्ली चुनावों में भाजपा के साथ टकराव की नीति नहीं अपनाना चाहती। शिअद और जजपा को किनारे कर भाजपा को आम आदमी पार्टी (आप) के मुकाबले कितनी कामयाबी मिल पायेगी। यह फरवरी के दूसरे हफ्ते में आने वाले चुनाव परिणाम से साफ़ हो जाएगा।