लखनऊ। कानपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी के सभागार में हुई बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सबसे ज्यादा जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज प्रबंधन के काम से नाराज नजर आए। उन्होंने कॉलेज और हैलट की कार्यक्षमता पर सवाल उठाए। बोले कि जब मेडिकल कॉलेज से संबद्ध हैलट में बेड क्षमता 1700 की है तो साढ़े तीन सौ बेड ही क्यों चालू रखे गए। हैलट में बेड खाली पड़े रहे और बाहर रोगी बेड के लिए भटकते-भटकते मर गए। जब हैलट में बेड हैं तो रोगियों को प्राइवेट अस्पतालों में क्यों जाना पड़ा।
बैठक में लगा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास एक-एक मामले का फीड बैक है। इसके बाद जब उन्होंने सवाल उठाए तो मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आरबी कमल और दूसरे अधिकारी जैसे सकते में आ गए। किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी और एसजीपीजीआई लखनऊ का उदाहरण देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि जीएसवीएम ने कोरोना काल में लीडर की तरह काम ही नहीं किया है। किसी तरह की रोग के मामले में खोजबीन नहीं की गई। एक काम चलाऊ टाइप की व्यवस्था रही। हैलट सिर्फ एक अस्पताल की तरह काम करता है। मेडिकल कॉलेज की तरह काम ही नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि तरीका यह था कि कोरोना के इलाज में नए तरीके के इनोवेशन किए जाते। इससे रोगियों को राहत मिलती। उन्होंने कोरोना के इलाज के लिए सभी विशेषज्ञ अस्पतालों को जोड़ने वाली ई-सेवा की भी बात की और कहा कि केजीएमयू और एसपीजीआई लखनऊ कोरोना के विशेष किस्म के केस पर एक-दूसरे से बातचीत करके बेहतर रास्ता निकालते रहे हैं। दूसरे कोविड अस्पतालों का मार्गदर्शन किया गया। इस तरह की लीडरशिप की उम्मीद जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज से थी।
बता दें कि मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य ने अपना पक्ष रखना चाहा लेकिन मुख्यमंत्री पहले ही बोल पड़े।आप कुछ न कहिए हमें सब पता है। फिर बोले, ऐसी कार्यशैली और प्रबंधन से मेडिकल कॉलेज को एम्स का दर्जा मिल पाना मुश्किल है। शासन अस्पताल का कितना भी उच्चीकरण कर लें, कितना भी बजट दे दे लेकिन जब उसका सही इस्तेमाल नहीं होगा, किए कराए पर पानी फिरने जैसा होता है। मेडिकल कॉलेज ने खुद को ऐसा ही साबित किया। तीसरी लहर से पहले मेडिकल कॉलेज अधूरे प्रोजेक्टों को पूरा कर ले। अव्यवस्थाओं को ठीक कर ले। डॉक्टरों के रवैये में सुधार की बहुत जरूरत है। सरकार को एक एक चीज की खबर है। अगली लापरवाही नुकसानदायक होगी।