राम मंदिर के योद्धा : यूपी पुलिस के वह पूर्व प्रमुख जिनके पास थी कारसेवकों की अहम जिम्मेदारी

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लखनऊ :- 1990 में अक्टूबर के अंतिम दिनों की वह हल्की सर्द रात थी, लेकिन प्रयागराज, लख़नऊ और अयोध्या में हो रही गुप्त बैठकों में अजीब सी गर्मी और तनाव का वातावरण था। यहां एक ही बात पर मंथन चल रहा था कि किसी भी तरह कारसेवक अयोध्या पहुंचने चाहिये। उधर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के बयान कि ‘अयोध्या में परिंदा भी पर नही मार सकता’ का अक्षरशः पालन हो रहा था। जिलों और अन्य राज्यों की सीमाएं सील थीं और अयोध्या एक छावनी बन चुकी थी। इन सबके बावजूद इन बैठकों में शामिल एक व्यक्ति अपनी रणनीति बनाने में व्यस्त था। ये थे प्रदेश के सेवानिवृत्त डीजीपी और अशोक सिंघल के बेहद भरोसेमंद श्रीशचंद्र दीक्षित। 

दीक्षित को जिम्मेदारी मिली थी कि किसी भी प्रकार ज्यादा से ज्यादा और आंदोलन के प्रमुख नेता अयोध्या आने चाहिये। अशोक सिंघल को पूरा भरोसा था अपने साथी पर। आनन फानन में रणनीति तैयार हुई। दीक्षित को अपने सम्पर्कोे और पुलिस के अनुभव पर भरोसा था। किसी को पत्रकार, किसी को किसान तो किसी को पुलिस कर्मी बनाकर अयोध्या भेजने की तैयारी हुई। ख़ुद मंदिर आंदोलन के अगुआ अशोक सिंघल पांचजन्य के परिचय पत्र पर पत्रकार बन गए। वरिष्ठ पत्रकार और ‘युद्ध मे अयोध्या’ पुस्तक के लेखक हेमन्त शर्मा के अनुसार श्रीशचंद्र दीक्षित कारसेवकों को सुरक्षित अयोध्या पहुचाने में अहम भूमिका थी।

मंदिर आंदोलन में निभाई अग्रणी भूमिका
श्रीशचंद्र दीक्षित 1982 से 84 तक दो साल तक उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहे।सेवानिवृत्त के बाद वह तुरंत विश्व हिंदू परिषद से जुड़ गए। रामभक्त दीक्षित का सपना अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण का रहा है और इस नई भूमिका में उन्होंने अपने को पूरी तरह समर्पित कर दिया। 1989 में प्रयाग में आयोजित धर्मसंसद में देवरहा बाबा द्वारा दी गई शिला लेकर देशभर की यात्रायें की और लोगों को इस आंदोलन से जोड़ा। कारसेवा में नेताओं से लेकर कारसेवकों को कैसे अयोध्या भेजा जाए वह इस काम मे बेहद सक्रिय रहे।विहिप के प्रंतीय मंत्री रामगोपाल त्रिपाठी के अनुसार वह नायक तो थे लेकिन ख़ुद को हमेशा आम कार्यकर्ता ही मानते रहे।

जब सुरक्षकर्मियों के सामने कारसेवकों के ढाल बन गये 
पूर्व डीजीपी श्रीशचंद्र दीक्षित ने कारसेवकों की भारी भीड़ को सख़्ती के बावजूद अयोध्या पहुंचाने में कामयाब हो गए थे। पूरे अयोध्या को छावनी बना दिया गया था। जगह-जगह बैरिकेडिंग कर सभी को रोका जा रहा था। 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों की एक टुकड़ी का नेतृत्व श्रीशचंद्र दीक्षित कर रहे थे, वह आगे बढ़ रहे थे कि विवादित ढांचे के 1.5 किमी तक बैरिकेडिंग  लगाई गई थी। भीड़ बेकाबू हो रही थी और सुरक्षकर्मियों ने भी बंदूकें तान ली थी। अचानक उनकी निगाहें दीक्षित के ऊपर पड़ी। सभी ने तुरंत अपनी बंदुके नीचे कर लीं। कुछ ने जय हिंद कहकर उनका अभिवादन भी किया। इस दौरान दीक्षित लगातार भीड़ के सामने ढाल बनकर खड़े रहे। जानकारों का कहना है कि इस घटना से कारसेवकों की जान बच गई नहीं तो बड़ी अनहोनी हो सकती थी। 

जीवनभर बने रहे नायक
रायबरेली के सोतवाखेड़ा गांव में 3 जनवरी 1926 को जन्मे श्रीशचंद्र दीक्षित अपने जीवनभर एक नायक की भूमिका में रहे। पुलिस सेवा के दौरान 1973 और 1980 में पुलिस और राष्ट्रपति द्वारा पदक प्राप्त कर उन्होंने अपनी काबिलियत का परिचय दिया था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सुरक्षा अधिकारी के रूप में उनका कार्यकाल उल्लेखनीय है। जब सेवानिवृत्त के बाद मंदिर आंदोलन से जुड़े तो भी वह लगातार नींव के पत्थर और नायक दोनों की भूमिका में रहे। 1991 में पहली बार 10 वीं लोकसभा में वाराणसी से भाजपा का झंडा फहराकर सांसद बने। वृद्धावस्था में वह रायबरेली के प्रभुटाउन स्तिथ अपने घर में काफ़ी दिन रहे। यहां भी सामाजिक संस्थाओं में सक्रियताऔर बुजुर्गों के साथ उनकी भूमिका की आज भी लोग चर्चा करते हैं। अपने लोगों से उनका लगाव और प्रेम था कि वह सभी के सुख दुःख के साथी रहे। जीवनभर नायक की भूमिका में रहे श्रीशचंद्र दीक्षित का 90 वर्ष की आयु में 8 अप्रैल 2014 को निधन हो गया।