पुरोहित हुए बेरोजगार, कुआंरों के अरमानों पर फिरा पानी

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नई दिल्ली :- कोरोना काल में श्रमिक, इंजीनियर, व्यवसायी ही नहीं समाज का पुरोहित भी बरोजगार हो गया है। शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्य रुकने से कुआंरों के अरमानों पर पानी फिर गया है। भारतीय परंपरा और समाज में जेठ-अषाढ़ का महीना मांगलिक कार्यों के लिए आरक्षित माना जाता है। लेकिन कोरोना ने यजमान और पुरोहित दोनों के सपनों का चकनाचूर कर दिया।

देखा जाये तो कोरोना ने पुरोहितों के असल कमाई के समय चैत्र नवरात्र से ही बंदिशें लगा दी। नवरात्र में सप्तशती पाठ, अनुष्ठान, यज्ञादि सम्पन्न कराते। इसके बाद शादी-विवाह, गोद भराई, तिलक समारोह, भागवत कथा, रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जप, यज्ञादि में मिले दक्षिणा पर ही पुरोहित आश्रित रहते हैं। लेकिन कोरोना ने इस साल पुरोहितों के जेब पर डाका डाल दिया।

पुरोहित वर्ग स्वाभिमानी माने जाते हैं। ये खाली पेट रात बिता लेंगें, लेकिन किसी के आगे हाथ फैलाना मर जाने के समान मानते हैं। सरकारी राहत से वंचित आचार्य व पुरोहित वर्ग सरकारी मानक के हिसाब से गरीब की श्रेणी में नहीं आता। लिहाजा सरकारी सुविधाओं से वंचित हैं। संस्कृत महाविद्यालयों के अध्ययनरात छात्रों के आचार्य पूरा करने के बाद समाज का बड़ा वर्ग पौरोहित्य कर्म पर आश्रित है। जो तालाबंदी में अर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा है।